एकात्म मानववाद के 60 वर्ष

UPUL journal publication image vol 4 Issue 1 01

UPUL International Journal for Multidisciplinary Research
Vol 4 (1) 2025

Author:-

Dr. Prashant Jaiwardhan,
Asst. Professor Jharkhand Rai University
Media Studies

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय 3 IN ONE : विचारक, लीडर और संगठक।

भारतीय संस्कृति एकात्मवादी है जो जीवन के विभिन्न अंगो के दृश्य भेद स्वीकारते हुए उनके स्तर में एकता की खोज और समन्वय की स्थापना करती है। परस्पर विरोध और संघर्ष के स्थान पर वह पूरकता, अनुकूलता और सहयोग के आधार पर चलती है। एकात्म मानव विचार भारतीय और बाह्य सभी चिंतन की धाराओं का सम्यक आकलन करके चलता है। उसकी शक्ति और दुर्बलताओं को परखता है और एक ऐसा मार्ग प्रशस्त करता है जो मानव को उसके अब तक के चिंतन अनुभव और उपलब्धि की मंजिल की ओर बढ़ा सके।

एकात्म मानववाद का सिद्धांत : यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे

एकात्मवाद एक ऐसी धारणा है जो सर्पिलाकार मंडल आकृति द्वारा स्पष्ट की जा सकती है। जिसके केंद्र में व्यक्ति, घर-परिवार, समाज जाति, फिर राष्ट्र और विश्व और फिर अनंत ब्रह्मांड को अपने में समाए हुए हैं। एक से जुड़कर दूसरे का विकास किया जाता है। हमारी संपूर्ण व्यवस्था का केंद्र मानव का होना चाहिए। जो कि “यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे” के न्याय अनुसार समष्टि का जीवंत प्रतिनिधि एवं उसका उपकरण है।
एकात्म मानववाद पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मुंबई में 22 से 25 अप्रैल 1965 में चार भागों में दिए गए भाषण का सार है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय पूंजीवाद और समाजवाद दोनों विचारधाराओं को भारत के लिए अनुपयुक्त और अव्यावहारिक मानते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि भारत को सुचारू रूप चलाने के लिए नीति निर्देशक सिद्धांत भारतीय दर्शन के आधार पर ही हो सकता है। वे पश्चिमी जगत में जन्में सिधान्तों के विरुद्ध मानव और समाज को विभाजित करके देखने के पक्षधर नहीं थे। उनके अनुसार मानव अस्तित्व के चार अवयव होते हैं। शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा जिनके माध्यम से जीवन के चार मौलिक उद्देश्यों काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष को प्राप्त किया जाता है। इनमें से किसी की भी अवहेलना नहीं की जा सकती लेकिन मनुष्य और समाज के लिए धर्म आधारभूत होता है और मोक्ष अंतिम लक्ष्य है।

एकात्म मानववाद तीन मुख्य सिद्धांत :

  • संपूर्णता की प्रधानता: यह जीवन को अलग-अलग भागों के बजाय एकीकृत रूप में देखने के महत्व पर बल देता है।
  •  धर्म की सर्वोच्चता: नैतिक सिद्धांतों को समाज का मार्गदर्शन करने पर बल देता है।
  •  समाज की स्वायत्तता: इस विचार का समर्थन करता है कि समाज को स्वयं पर शासन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

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Keywords: Integral Humanism, Deendayal Upadhayaya, Ekatma Manav Darshan

#60YearsOfEkatmaManavDarshan


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