मां, मातृभाषा एवं मातृभूमि का विकल्प नहीं: अतुल कोठारी

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राँची : झारखंड

@ The Opinion Today

स्थानीय यू.जी.सी. एच.आर.डी. रांची विश्वविद्यालय के सभागार में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर एक संगोष्ठी का आयोजन दीप प्रज्वलन कर किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रोo विजय कुमार सिंह क्षेत्र संयोजक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने रखा तथा उन्होंने कहा कि आजादी के बाद लंबे संघर्ष के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है, इसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाली पीढियो को भारतीय संस्कृति एवं विरासत की जानकारी आवश्यक है ताकि हुए अपनी जड़ों से ना कट सके। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉक्टर अतुल भाई कोठारी ने अपने संबोधन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू किया है। इसका क्रियान्वयन उच्च शिक्षा में कार्य में कार्यरत प्राध्यापक, वैज्ञानिक आदि ही कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक विश्वविद्यालय शिक्षको एवं छात्रों का टास्क फोर्स बनाकर उसके क्रियान्वयन की दिशा में कार्य करें ताकि हम आर्थिक कमा सामाजिक एवं अकादमी सभी क्षेत्रों में दुनिया में नाम कर सके। उन्होंने कहा कि संपूर्ण अध्यापन अपनी भारतीय भाषाओं में करने की आवश्यकता है ताकि बच्चों में अन्वेंशन की क्षमता बढ़े। दुनिया के कई देश अपनी भाषाओं में पढ़ाई कर तकनीकी शोध के क्षेत्र में दुनिया में अवल है। उन्होंने सभी शिक्षाविदों को राजनीति से ऊपर उठकर क्रियान्वयन हेतु एक प्लेटफार्म पर आकर काम करना चाहिए।

इस अवसर पर उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना पड़ेगा। मां मातृभाषा एवं मातृभूमि का विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा और दर्शन में सदा सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना जाता था। प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य सांसारिक जीवन अपवाह विद्यालय के बाद का जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञान अर्जन करना मात्र नहीं बल्कि आत्मज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था। हमें केवल अपने राष्ट्र की अखंडता ही सुरक्षित नहीं रखता है। इसके साथ-साथ संस्कृति, परंपराओं को भी अशून्य रखना होगा। समय आ गया है जब आध्यात्मिक एवं विज्ञान का समन्वय हो। इसी संदर्भ में उन्होंने सभी विद्यालय एवं विश्वविद्यालय के प्रमुखों को भारतीय ज्ञान परंपरा के केंद्र स्थापित करने की सलाह दी।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ संवित सेंगर कुलाधिपति राय विश्वविद्यालय ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन रांची विश्वविद्यालय के डीन स्टूडेंट वेलफेयर सह निदेशक यू.जी.सी. – एच.आर.डी. डॉक्टर एस.एन. साहू ने किया। इस अवसर पर श्री सुरेश गुप्ता, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ बृजेश कुमार, डॉक्टर ज्योति प्रकाश, डॉ सुनीता गुप्ता, डॉक्टर बालेश्वर पाठक, डॉक्टर धर्मराज कुमार, श्री अमरकांत झा, डॉ सुनील झा, डॉक्टर सुमित पांडे, डॉक्टर मृदानिश झा, श्री अशोक राज, डॉक्टर पंकज कुमार, डॉक्टर राजीव सहदेव के साथ काफी संख्या में शिक्षाविद् उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन राय विश्वविद्यालय के कुलपति सह न्यास के प्रदेश अध्यक्ष डॉ पीयूष रंजन ने किया।

कार्यक्रम का अंत राष्ट्रगान के साथ किया गया। इस अवसर पर विशेष रूप से रांची विश्वविद्यालय एवं डॉक्टर श्यामा प्रसाद विश्वविद्यालय के नवनियुक्त सीनेट एवं सिंडिकेट सदस्य डॉक्टर पंकज कुमार, डॉक्टर धर्मराज, डॉक्टर सुनीता गुप्ता, श्री शशांक राज को शाल देकर अतुल भाई कोठारी ने सम्मानित किया तथा आशा व्यक्त किया गया कि इनका रचनात्मक सहयोग विश्वविद्यालय को मिलेगा।

 


 


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