मधुमक्खी पालन: उद्यम, आय और लाभ

Bee keeping and honey

रांची : झारखंड

@The Opinion Today

मधुमक्खी पालन एक कृषि आधरित उद्यम है, जिसे किसान अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए अपना सकते हैं।
मधुमक्खी फूलों के रस को शहद में बदल देती है और उन्हे अपने छतों में जमा करती हैं। बाजार में शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन अब एक लाभदायक और आकर्षक उद्यम के रूप में स्थापित हो चला है। मधुमक्खी पालन के उत्पाद के रूप में शहद और मोम आर्थिक दृष्टि से महत्वपुर्ण हैं

आय बढ़ाने की गतिविधि के रूप में मधुमक्खी पालन के लाभ

  • मधुमक्खी पालन में कम समय, कम लागत कम ढाचागत पूंजी निवेश की जरूरत होती है।
  • कम उपज वाले खेत से भी शहद और मधुमक्खी के मोम का उत्पादन किया जा सकता है।
  • मधुमक्खी खेती के किसी अन्य उद्यम से कोई ढाचागत प्रतिस्पद्र्धा नहीं करती है।
  • मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खीयां कई फूलवाले पौधों के पारागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस तरह वे सूर्यमुखी और विभिन्न फलों का उत्पादन मात्रा बढ़ाने में सहायक होती है।
  •  शहद एक स्वादिष्ट और पोषक खाद्य पदार्थ है। शहद एकत्र करने के परांपरिक तरिकों में मधुमक्खियों के जंगली छते नष्ट कर दिये जाते हैं। इसे मधुमक्खियों को बक्से में रख कर और घर में शहद उत्पादन कर रोका जा सकता है।
  • मधुमक्खी पालन किसी एक व्यक्ति या समुह द्वारा शुरू किया जा सकता है।
  • बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।

उत्पादन की प्रक्रिया:- मधुमक्खियां खेत या घर में पाली जा सकती है।

मधुमक्खी पालन के लिए आवष्यक उपकरण
1 छत्ता : यह एक साधारण लंबा बक्सा होता है, जिसे उपर से कई छड़ों से ढंका जाता है। बक्से का आकार 100 सेंटीमीटर लम्बा, 45 सेंटीमीटर चैड़ा और 25 सेंटीमीटर ऊचां होता है। बक्सा 2 सेंटीमीटर मोटा होना चाहिए और उसके भीतर छत्तों को चिपकाकर 1 सेंटीमीटर के छेद का प्रवेश द्वार बनाया जाना चाहिए। उपर की छड़ बक्से की चैड़ाई के बराबर लम्बी होनी चाहिए और उसे करीब 1.5 सेंटीमीटर मोटी होनी चाहिए। इतनी मोटी छड़ एक भरी छत्ते को टांगने के लिए प्रर्याप्त है। 2 छड़ो के बीच 3.3 सेंटीमीटर की खाली जगह होनी चाहिए, ताकि मधुमक्खियों को प्राकृतिक रूप में खाली जगह मिले और वे नया छत्ता बना सकें।
2 स्मोकर या धुआं फेकनेवाला: यह दूसरा महत्वपूर्ण उपकरण है। इसे छोटे टिन से बनाया जा सकता है। हम धुआं फेंकनेवाले का उपयोग खुद को मधुमक्खियों के डंक से बचाने और उन पर नियंत्रण पाने के लिए करतें हैं।
3 कपड़ा: काम के दौरान अपनी आंखों और नाक को मधुमक्खियों के डंक से बचाने के लिए।
4 छुरी: इसका इस्तेमाल ऊपरी छड़ों को ढीला करने और शहद की छड़ों को काटने के लिए किया जाता है।

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मधुमक्खियों की प्रजातियां:

भारत में मधुमक्खियों की निम्नलिखित चार प्रजातिया पाई जाती है:-

  1.  पहाड़ी मधुमक्खी (एपिस डोरसाटा) ये ज्यादा मात्रा में शहद एकत्र करने वाली होती है। इनकी एक काॅलनी से 50 से 80 किलो तक शहद मिलता है
  2. छोटी मधुमक्खी (एपिस फ्लोरिया) इनसे बहुत कम शहद मिलता हैएक काॅलोनी से मात्र 200 ग्राम से 900 ग्राम शहद ही एकत्र करती है।
  3. भारतीय मधुमक्खी (एपिस सेराना इंडिका) ये 1 साल में 1काॅलनी से औसतन 6 से 8 किलो शहद देती है।
  4. यूरोपियन मधुमक्खी(इटालियन मधुमक्खी) (एपिस मेल्लीफेरा) इनकी एक काॅलनी से औसतन 25 से 40 किलो तक शहद मिलता है।
    इसके अलावा केरल में एक और प्रजाति है, जिसे डंकहीन मधुमक्खी कहा जाता है। इनके डंक अल्पविकसित होते है। ये परागण की विषेषझ होती है। ये हर साल 300 से 400 ग्राम शहद उत्पादित करती है।

छतों की स्थापना:- सभी बक्से खुली और सूखी जगहों पर होनी चाहिए। यदि यह स्थान किसी बगीचे के आसपास हो तो और भी अच्छा होगा बगीचे में पराग, रस और पानी का प्रर्याप्त स्त्रोत हो। छतों का तापमान उपयुक्त बनाए रखने के लिए इन्हे सुर्य की किरणों से बचाया जाना जरूरी है। छतों के आसपास चींटियों के लिए कुआं होना चाहिए। कॅालनीयों का रूख पूर्व की ओर हो और बारिष और सूर्य से बचाने के लिए इसकी दिसा में थोड़ा बहूत बदलाव किया जा सकता है। कॅालनियों को मवेषियों, अन्य जानवरों, व्यस्त सड़को और सड़क पर लगी लाइटों से दूर रखें।

मधुमक्खियों की काॅलनी की स्थापनाः- मधुमक्खी काॅलनी की स्थापना के लिए मधुमक्खी किसी जंगली छतों की काॅलनी से लेकर उसे छतों में स्थानान्तरित किया जा सकता है। या फिर उधर से गुजरने वाली मधुमक्खियों के झंड को आकर्षित किया जा सकता है। किसी तैयार झंड को आकर्षित या स्थानांतरित करने से पहले उस बक्से में परिचित सुगंध देना लाभदायक होता है। इसके लिए बक्से के भितर छत्तों के टुकड़ों को रगड़ दें या थोड़ा सा मोम लगा दें। यदि संभव हो तो रानी मक्खी को पकड़ लें और उसे अपनी छत्तों में रख दें, ताकि दूसरी मधुमक्खियां वहां आकर्षित हो। छत्ते जमा की गई मधुमक्खियों को कुछ सप्ताह के लिए भोजन करायें। इसके लिए आधा कप चीनी को आधा कप गरम पानी में घोल लें और उसे बक्से में रख दें। इससे छड़ के साथ तेजी से छतें बनाने में मदद मिलेगी।

कॅालनियों का प्रबंधन:- मधुमक्खी के छत्तों का शहद टपकने के मौसम में, खासकर सुबह के समय सप्ताह में कम से कम एक बार निरिक्षण करें।
निम्नलिखित क्रम में बक्सों की सफाई करें, छत, ऊपरी सतह, छत्तों की जगह और सतह।
कॅालनियों पर नियमित निगाह रखें और देखते रहें कि स्वस्थ रानी, छत्तों के विकास शहद का भंडारण पराग कण की मौजुदगी, रानी का घर और मधुमक्खियों की संख्या तथा छतों की कोष्टों का विकास होता है।

इनमें से मधुमक्खियों की किसी एक दुष्मन के संक्रमण की भी नियमित जांच करें –

  • मोम का कीड़ा (गैल्लेरिया मेल्लोनेला):– इसके लार्वा और सिल्कनुमा कीड़ो को छते से बक्सों के कानों से और छत से साफ कर दें।
  • मोम छेदक (प्लैटिबोलियम एसपी)ः- वयस्क छेद को एकत्र कर नष्ट कर दें।
  • दीमक: फ्रेम और सतह को रूई से साफ करें। रूई को पोटासियम परमैग्नेट के घोल में डुबायें। जबतक दिमक खत्म न हो जाए सतह को पोछते रहें।

नरम मौसम में प्रबंधन

  • छड़ो को हटा दें और उपलब्ध स्वस्थ मधुमक्खियों को अच्छी तरह से कोष्टकों में रखें।
  • यदि संभव हो, तो विभाजक दीवार लगा दें।
  • यदि पता चल जायें, तो रानी के घर और षिषुओं के घर को नष्ट कर दें।
  • भारतीय मधुमक्खियों के लिए प्रति सप्ताह 200 ग्राम चीनी का घोल दें।
  • पूरी काॅलनी को एक ही समय में भोजन दें, ताकि लुटपाट न हो।
    शहद एकत्र करने के मौसम में प्रबंधन
  • शहद एकत्र करने का मौसम शुरू होने से पहले काॅलनी में मधुमक्खियों की संख्या प्रर्याप्त बढ़ा लें।
  • पहले छत्तों और नये कोष्टों के बीच पर्याप्त जगह दें, ताकि रानी मधुमक्खी अपने कोष्ट में रह सके।
  • रानी मधुमक्खी को उसके कोष्ट में बंद करने के लिए रानी को अलग करने वाली दीवार लगा दें।
  • कॅालनी को सप्ताह में एक बार निरिक्षण करें और बक्से के किनारे शहद से भरे छत्तों को तत्काल हटा दें। इससे बक्सा हल्का होता रहेगा और 3 चैथाई भरे हुए शहद के बरतन को समय समय पर खाली करना जगह भी बचाएगा।
  • जिस छत्तों को पूरी तरह बंद कर दिया गया हो या शहद निकालने के लिए बाहर निकाला गया हो, उसे बाद में वापस पुराने स्थान पर लगा दिया जाना चाहिए।
    शहद एकत्र करना
  • मधुमक्खियों को धुआं दिखाकर अलग कर दें और सावधानी से छत्तों को छड़ से अलग करें।
  • शहद को अमुमन अक्टूबर-नवम्बर और फरवरी-जून के बिच ही एकत्र किया जाना चाहिए, क्योकि इस मौसम में फूल ज्यादा खिलतें हैं।
  • पूरी तरह भरा हुआ छत्ता हल्के रंग का होता है। इसके दोनो ओर के आधे से अधिक कोष्ट मोम से बंद होते हैं।

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