रांची : झारखंड
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नक्सलवाद पर केंद्र की गोली और गुलाब नीति।
मार्च समाप्ति पर है हवा में वसंत की गंध बाकी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय का लक्ष्य 31 मार्च 2026 तक देश को भाकपा माओवादियों के नक्सलियों से मुक्त करने का है। यह एजेंडा नेशनल सिक्यूरिटी काउंसिल की बैठक में वर्ष 2024 में तय किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 7 जुलाई 2024को समीक्षा बैठक की थी। 20 जुलाई को पुलिस मुख्यालय की तरफ से एक पत्र जारी किया गया जिसमें नक्सल मामले को लेकर जिलों के हालात के बारे में ब्योरा दर्ज था। चतरा जिले को नक्सल मुक्त घोषित किये जाने के बाद अब अर्धसैनिक बल की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर दी गयी है। सिक्योरिटी रेलेटेड एक्सपेंडिचर (एसआरआई )योजना के तहत जिले बाहर किया गया है। हालाँकि चतरा को अब भी मॉनिटरिंग में रखा गया है। इधर सीआरपीएफ 190 वीं बटालियन मुख्यालय लौटने की तैयारी कर रहा है। यह बटालियन जिले में पिछले डेढ़ दशक से तैनात था। सीआरपीएफ 190 वीं बटालियन के कमांडेंट मनोज कुमार ने कहा की अगले 1 महीने में सब कुछ चला जायेगा। साज ओ सामान की पैकिंग शुरू कर दी गयी है। छोटी छोटी टुकडियां रवाना हो रही है।
रेड कॉरिडोर का दायरा घटा।
2014 में देश के 126 जिलों में नक्सलियों का वर्चस्व था और ये जिले 10 राज्यों में फैले थे। अब यह संख्या सिमटकर 12 जिलों में ही रह गई है। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वामपंथी उग्रवाद को “राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा” बताया था। नेपाल में पशुपतिनाथ से लेकर आंध्र प्रदेश में तिरुपति तक रेड कॉरिडोर का दबदबा फैला था। इसमें झारखण्ड का चतरा जिला भी सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र माना गया। नक्सलवाद और स्प्रिंटर ग्रुप्स से निपटना चुनौती भरा फैसला था। चुनौती विभिन्न स्तरों पर पेचीदा थी। जनजातीय समाज की उपेक्षा, वन अधिकार, विस्थापन, स्थानीय स्तर पर राज्यसत्ता-विरोधी और हिंसक विचारधारा को फलने-फूलने के लिए मुकम्मल जमीन का होना और जंगली इलाकों में विकास की रोशनी फैलाना आसान न था।
गुरिल्ला युद्ध , कलाश्निकोव-लहराते गैरसरकारी सैन्य-वर्दीधारियों की हुकूमत के बीच चोर फंदे और बारूदी सुरंगों, घात लगाकर हमले , मुखबिरी और आमने सामने लंबी लड़ाई। वीर जवानों की शहादत का एक लंबा इतिहास।
फोर डाइमेंशनल पॉलिसी।
2019 में मोदी सरकार ने चार आयामों वाली अनूठी रणनीति से गतिरोध तोड़ने का कार्य किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर ठोस और संगठित तरीके से हथियारों और हिंसा को विकास और विश्वास में बदलने का कार्य शुरू किया गया। तकनीक, जबरन धन वसूली, हथियारों की पाइपलाइन को काटना, स्थानीय अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाकर नकदी की आमद पर शिकंजा कसने और नक्सल मुक्त इलाकों में विकास कार्यों को बढ़ावा देकर मूड और माहौल दोनों बदलने का काम शुरू किया गया। धीरे धीरे ही सही रेड स्पॉट का दायरा कम हुआ।
सीआरपीएफ जाने की चिंता सताने लगी ग्रामीणों को सताने लगा असुरक्षित होने का डर
कुंदा(चतरा):- कुंदा में सीआरपीएफ 190 बटालियन के जाने की सूचना से ग्रामीणों में मायूसी छा गई है। ग्रामीणों का कहना है कि सीआरपीएफ के कुंदा में कैम्प होने से वे बिल्कुल सुरक्षित महसूस करते थे।
ग्रामीणों ने बताया कि पहले कुंदा में एक समय ऐसा था जब 15 अगस्त और 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर वे घर में दुबक जाते थे, क्योंकि अचानक से नारेबाजी होने लगती थी और काला झंडा फहराया जाता था। लेकिन सीआरपीएफ के कुंदा में कैम्प होने के बाद से उन्हें राहत की सांस मिली थी।ग्रामीणों को अब फिर से उसी तरह के हालात की चिंता सता रही है। उन्होने ने सरकार से निवेदन किया है कि सीआरपीएफ कैम्प को रहने दिया जाय।
संगठन सक्रिय करने की तैयारी में नक्सली।
- पुलिस मुख्यालय के स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि नक्सली संगठन को फिर से सक्रिय करने की तैयारी में हैं
- रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए मुख्यालय ने सभी जिलों के एसपी को अलर्ट किया है।
- रिपोर्ट में सीआरपीएफ एवं झारखंड जगुआर को भी आपस में समन्वय बनाने और कार्रवाई करने को कहा गया है।
नक्सलवाद की शुरुआत: नक्सलवाद एक आंदोलन था जो स्थानीय ज़मींदारों के ख़िलाफ़ भूमि नियंत्रण को लेकर विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था।
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