पानी का अर्थशास्त्र: भारत में बढ़ता जल संकट और चौंकने वाले खुलासे

water crisis in india

रांची: झारखंड 

By chandanDubey @theopiniontoday

ग्लोबल कमिशन ऑन द इकोनामिक्स ऑफ वॉटर की एक हालिया रिपोर्ट में वैश्विक जल संकट की चेतावनी दी गई है, जिसमें वर्ष 2030 तक मांग आपूर्ति से 40% अधिक होने का अनुमान है।यह खाद्य उत्पादन और अर्थव्यवस्थाओं को खतरा है। भारत जो पहले से ही अंतर-राज्यीय जल विवादों और संरक्षण चुनौतियों से जूझ रहा है, यह रिपोर्ट जल संकट को दूर करने के लिये निर्णायक नीति सुधारों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत में जल उपलब्धता और जल तनाव स्तर की वर्तमान स्थिति:भारत में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2001 में 1,816 घन मीटर से घटकर 2011 की जनगणना के अनुसार 1,545 घन मीटर हो गई। केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2025 तक जलस्तर और घटकर 1,434 घन मीटर तथा वर्ष 2050 तक 1,219 घन मीटर हो जाएगा। प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1,700 घन मीटर से कम होना ‘जल तनाव’ को दर्शाता है, जबकि 1,000 घन मीटर से कम होना ‘जल की कमी’ को दर्शाता है। वर्तमान में भारत जल संकट का सामना कर रहा तथा भौगोलिक और जलवायु संबंधी विविधता के कारण क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं।

भारत की जल-संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ:

भूजल की कमी: भारत, विशेष रूप से कृषि प्रधान राज्यों में, भूजल की गंभीर कमी का सामना कर रहा है। सिंचाई के लिये अत्यधिक दोहन के कारण भूजल स्तर में तेज़ी से गिरावट आई है। उदाहरण के लिये पंजाब में, ट्यूबवेल से अनियंत्रित सिंचाई के कारण भूजल स्तर में भारी गिरावट आ रही है। आदर्श रूप से, भूजल 50 फीट से 60 फीट की गहराई पर उपलब्ध होना चाहिये, लेकिन पंजाब में (वर्ष 2019 तक) इसका स्तर ज़्यादातर स्थानों पर 150 फीट से 200 फीट नीचे चला गया गया है। यह मुद्दा गंभीर है क्योंकि भूजल सिंचाई और घरेलू जल आपूर्ति दोनों का प्रमुख स्रोत है।वर्ष 2019 का चेन्नई जल संकट, जहाँ जल का ट्रेन से परिवहन करना पड़ा था, शहरी जल मुद्दों की गंभीरता का उदाहरण है। वर्ष 2023 में अपर्याप्त वर्षा के कारण कर्नाटक राज्य में, विशेषकर इसकी राजधानी, IT शहर बंगलुरु में जल संकट उत्पन्न हो गया।  कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2023 को सूखा वर्ष घोषित किया है। इसके अलावा, शहरी बाढ़ भी एक गंभीर मुद्दा बनती जा रही है। केंद्रीय जल आयोग ने वर्ष 2022 में 184 और वर्ष 2021 में 145 चरम और गंभीर बाढ़ की स्थिति दर्ज की।
ऐसा नहीं है कि सरकारों ने ध्यान नहीं दिया है।मोदी सरकार ने इस संकट के समाधान के लिए कुछ स्थायी समाधान की तलाश भी की है।सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय के माध्यम से इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने का प्रयास भी किया है।
  • जल शक्ति अभियान (JSA): वर्ष 2019 में शुरू किये गए इस अभियान का उद्देश्य देश भर में जल संरक्षण और संचयन को बढ़ावा देना है। वर्तमान चरण, जल शक्ति अभियान: कैच द रेन (JSA: CTR) 2024, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों सहित सभी ज़िलों में वर्षा जल संचयन अवसंरचनाओं के निर्माण एवं मरम्मत पर केंद्रित है।
  • अटल भूजल योजना :7 राज्यों (हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) के 80 ज़िलों में 8,213 जल-संकटग्रस्त ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित यह योजना भूजल विकास से ध्यान हटाकर संधारणीय प्रबंधन प्रथाओं पर केंद्रित है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई की पहुँच और दक्षता में सुधार लाने के उद्देश्य से PMKSY में तीन घटक शामिल हैं:
भारत के मानसून पर निर्भर जल चक्र को देखते हुए, जल भंडारण में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है। इसका अर्थ आवश्यक रूप से बड़े बाँध नहीं है, बल्कि छोटे, विकेंद्रित भंडारण संरचनाओं का एक नेटवर्क है। राजस्थान के जल स्वावलंबन अभियान की सफलता, जिसके तहत अनेक छोटी जल संचयन संरचनाएँ बनाई गईं, इस दृष्टिकोण की क्षमता को प्रदर्शित करती है। इससे भूजल का पुनर्भंडारण करने और शुष्क क्षेत्रों में जल की उपलब्धता में सुधार करने में मदद मिली है। साइट चयन और डिज़ाइन के लिये आधुनिक तकनीक के साथ पारंपरिक जल संचयन विधियों को मिलाकर देश भर में एक सुदृढ़, स्थानीय रूप से अनुकूलित जल भंडारण नेटवर्क बनाया जा सकता है।
डेटा-संचालित जल प्रबंधन: जल प्रबंधन में रियल टाइम मॉनिटरिंग और डेटा-संचालित निर्णय लेने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना आवश्यक है। विश्व बैंक द्वारा समर्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना ने ऐसी प्रणालियाँ शुरू की हैं जो जलाशय प्रबंधकों को सटीक, रियल टाइम जानकारी देती हैं।इसे सभी प्रमुख जल निकायों तक विस्तारित करने तथा इसे AI और मशीन लर्निंग के साथ एकीकृत करने से जल प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। उदाहरण के लिये, बोरवेल की निगरानी के लिये बंगलुरु में IoT उपकरणों के उपयोग से जल वितरण दक्षता में सुधार हुआ है। ऐसी प्रणालियों के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन से अधिक संवेदनशील और कुशल जल प्रबंधन हो सकता है। जल संकट की तात्कालिकता भारत सरकार से निर्णायक कार्रवाई और जल प्रबंधन प्रथाओं को बेहतर बनाने के लिये सामूहिक प्रयास की मांग करती है। प्रभावी शासन, सामुदायिक भागीदारी और तकनीकी प्रगति पर ज़ोर देना वर्तमान जल-संबंधी बाधाओं को दूर करने और देश के लिये एक अनुकूल जल प्रबंधन फ्रेमवर्क को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण होगा। यह सतत् विकास लक्ष्य 6 (SDG 6) के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य सभी के लिये जल और स्वच्छता की उपलब्धता एवं संधारणीय प्रबंधन सुनिश्चित करना है।

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