राँची : झारखंड
@ The Opinion Today
“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा”
1 जून, 1916 को इन शब्दों ने एक क्रांति को प्रज्वलित किया और भारतीय इतिहास की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया। लोकमन्या बाल गंगाधर तिलक के द्वारा औपनिवेशिक शासन से पूर्ण स्वशासन की पहली जोरदार मांग और संपूर्ण स्वराज्य की हुंकार ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को और तेज कर दिया। जिसने भारतियों के चेतन मे इस अवधारणा को और सशक्त बना की आज़ादी मिली नही और ना ही हमे दी गई थी। बल्की संघर्ष और संग्राम से ली गयी थी।
उनके इस ऐतिहासिक नारे “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा!” का जन्म 1916 में लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान हुआ था। इस उद्घोष ने पूरे देश में एक नई ऊर्जा भर दी। यह नारा न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग था, बल्कि यह भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान और आत्म-सम्मान की भी अभिव्यक्ति था। तिलक ने लोगों को समझाया कि स्वराज्य केवल राजनीतिक सत्ता का हस्तांतरण नहीं है, बल्कि यह अपने देश पर अपना शासन और अपनी संस्कृति का संरक्षण भी है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भारतीय स्वतंत्रता संग्रामके अग्रदूतों में से एक, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। उनका प्रसिद्ध नारा “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा!” (Swaraj is my birthright, and I shall have it!) ने पूरे भारत में देशभक्ति की अलख जगाई और लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। यह सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि यह भारतीय जनता की सदियों की गुलामी से मुक्ति की आकांक्षा का उद्घोष था।
तिलक, जिन्हें “लोकमान्य” की उपाधि प्रदान की गई। वह एक दूरदर्शी नेता, प्रखर पत्रकार, समाज सुधारक और शिक्षाविद् थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भारतीय समाज और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की।
तिलक का मानना था कि स्वशासन ही भारत की सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है। उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों का पुरजोर विरोध किया और भारतीयों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। उन्होंने ‘केसरी’ (मराठी) और ‘मराठा’ (अंग्रेजी) नामक समाचार पत्रों के माध्यम से अपने विचारों का प्रचार किया। इन पत्रों में वे ब्रिटिश सरकार की आलोचना करते थे और भारतीय जनता को एकजुट होने का आह्वान करते थे। उनके लेख इतने प्रभावशाली होते थे कि ब्रिटिश सरकार भी उनसे भयभीत रहती थी।
लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव और शिवाजी जयंती जैसे सार्वजनिक उत्सवों को राष्ट्रीय एकता और राजनीतिक चेतना जगाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया। इन उत्सवों के माध्यम से उन्होंने लोगों को एक साथ लाया और उनमें राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत किया। उन्होंने शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया और भारतीयों के लिए आधुनिक शिक्षा के प्रसार का समर्थन किया।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जीवन और उनके विचार आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उनका “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा आज भी प्रत्येक भारतीय के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो हमें अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने की याद दिलाता है। उन्होंने हमें सिखाया कि स्वतंत्रता केवल एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह एक जन्मसिद्ध अधिकार है जिसके लिए हमें निरंतर संघर्ष करना चाहिए। तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ, लेकिन उनके विचार और उनका संघर्ष सदैव भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।
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