जामताड़ : झारखंड
@ The Opinion Today
देर शाम तक बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के दातू गांव के बाजार में यह जो चहल पहल नज़र आ रही है यह पहले भी रहती थी लेकिन एक खामोश बदलाव भी साथ साथ हुआ है। यह बदलाव लाया है दातू गांव की ऊषा कुमारी और उनकी टीम
टेक जायंट की लड़कियों ने।
ऊषा और उनकी टीम ने गांव में बेकार पड़े पाईप को इस्तेमाल में लाकर उनसे रेहड़ी पटरी पर दुकान लगाने वाले दुकानदारों के लिए चलती फिरती स्ट्रीट लाइट लगाने का कारनामा कर दिखाया है। प्लास्टिक से बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिया किया गया उनका यह प्रयास धीरे धीरे रंग लाने लगा है । शाम के समय सड़क के पास दुकान लगाकर सब्जियां बेचने और दैनिक उपयोग के समान बेचने वाले इन दुकानदारों को रात होते ही अब दुकान समेटने की जल्दी नहीं रहती क्योंकि उनके पास अब महंगे लाइट और बैटरी वाले टॉर्च की जगह फ्यूज एलईडी बल्ब को रिपेयर कर दिया गया बल्ब है और साथ में वेस्ट पीवीसी पाइप से तैयार किया गया खंबा भी मौजूद है जो उनके बिजनेस में किसी भी रुकावट को दूर करने का काम करता है।
कसमार प्रखंड के दातू गांव की रहने वाली ऊषा कुमारी और उसकी तीन सहेलियों ने सबसे पहले पढ़ाई के साथ फ्यूज हो चुके एलईडी बल्ब को ठीक करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर तो एक सिलसिला शुरू हो गया और इस टीम को फ्यूज बल्ब ठीक करने का ऑर्डर भी आने लगा। ऊषा बताती है कि वह और उनकी टीम ने अब तक 5 हजार से अधिक फ्यूज बल्ब ठीक किया है।उन्हें पहला और सबसे बड़ा ऑर्डर जयपुर राजस्थान से मिला था उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
झारखंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी रांची में 2024 में आयोजित हुए आइडिया पिचिंग कांटेस्ट में भी ऊषा कुमारी ने हिस्सा लिया था जहां उनके इस स्टार्टअप को काफी सराह गया।
यूनिवर्सिटी से इस कार्य को बढ़ावा देने के लिए उन्हें 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि भी मिली थी जिसका उपयोग उनकी टीम गांव की महिलाओं को प्रशिक्षित करने में लगा रही हैं। ऊषा ने गांव में ही एक ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू किया है जिसमें ग्रामीण महिलाएं फ्यूज बल्ब रिपेयरिंग का प्रशिक्षण प्राप्त करती है।
खराब पड़े पीवीसी पाइप से बना दिया बल्ब स्टैंड।
ऊषा और उनकी सहेलियों ने जब यह महसूस किया कि उनके गांव के बाजार में सड़कों के समीप सब्जियां और अन्य सामान बेचने वाले छोटे दुकानदार शाम ढलते ही कम दामों में सब्जियां बेच कर घर जाने की जल्दी में होते है और इसका कारण महंगे टार्च और बैट्री से चलने वाले लाइट्स का ज्यादा देर तक बैकअप नहीं देना और महंगे दाम की लाइट्स भी सभी दुकानदारों के पास नहीं होती तो उन्होंने खराब पड़े पाईप से ही बल्ब स्टैंड बना दिया जिसे दुकानदार आराम के साथ अपनी दुकान में लगाकर समान बेच सकता है और ये बल्ब किफायती भी है।

ऊषा इसके बारे में बताती हुई कहती हैं गांव में सड़क के पास बोरा बिछाकर दुकान लगाने वाले अधिकांश दुकानदार शाम ढलते ही अपना सामान सस्ते दाम पर बेच कर दुकान समेटने लगते है जब हमारी टीम ने यह पता लगाया तो पता चला कि उन्हें ग्राहकों को समान बेचते समय दिक्कत होती है क्योंकि प्रयाप्त प्रकाश की व्यवस्था नहीं रहती है।इसलिए वह जल्दी अपना सामान समेट कर घर जाना चाहते है। इस समस्या का निदान निकालने के लिए हम लोगों ने स्ट्रीट लाइट का विकल्प खराब पड़े पीवीसी पाइप से निकाला।
हमारी टीम ने उन पाइपों में बल्ब को फिट किया । ये फ्यूज बल्ब होते हैं जिन्हें हम ठीक कर काम के लायक बनाते है। इन फ्यूज हो चुके बल्ब की कीमत कम होती है जिनके चलते इनकी कीमत भी नए बल्ब से काफी कम होती है। इन बल्ब्स को हम पीवीसी पाइप के साथ फिट कर टेबल लैंप की तरह बना देते हैं जो दुकानदारों के बेहद काम आती है।इससे इन्हें महंगे बल्ब या बैटरी वाले टॉर्च खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।
UN और unisef ने की सराहना।
ऊषा और उनकी टीम टेक जायंट के द्वारा वेस्ट मटेरियल से बनाए गए उत्पादों की सराहना यूनाइटेड नेशन और यूनिसेफ ने भी की है। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर उनकी टीम को SAIL बोकारो ने बीट प्लास्टिक थीम को आगे बढ़ाने के लिए सम्मानित भी किया। सेल ने इको इनोवेशन पुरस्कार देकर टीम जायंट को सम्मानित किया।
ऊषा कुमारी और उनकी सहेलियों का यह प्रयास देखने में भले ही छोटा लगता हो लेकिन यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाया गया ठोस कदम है।
प्लास्टिक के बढ़ते प्रयोग और उनसे होने वाली बीमारियों को लेकर चर्चाएं तो खूब होती है लेकिन प्लास्टिक वेस्ट को लेकर ऊषा और उनकी टीम की मुहिम कबीले तारीफ है। द ओपिनियन टुडे की टीम उनके इस प्रयास को सलाम करती है।
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