गुजरात का गरबा: यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल

garba

रांची : झारखंड

@The Opinion Today

गुजरात की पारंपरिक नृत्य शैली गरबा को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है। यह भारत के लिए एक गर्व का क्षण है, क्योंकि गरबा न केवल एक नृत्य है, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक अनुभव भी है जो राज्य की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।

गरबा की उत्पत्ति और महत्व:
गरबा का आरंभ गुजरात में हुआ था और यह नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय है। यह नृत्य देवी दुर्गा की आराधना के रूप में किया जाता है और इसमें महिलाएँ रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान पहनकर एक वृत्ताकार समूह में नृत्य करती हैं। गरबा का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा के सम्मान में नृत्य और गायन के माध्यम से भक्ति प्रकट करना है।

यूनेस्को की मान्यता:
यूनेस्को ने गरबा को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कर इसे वैश्विक मान्यता प्रदान की है। यह मान्यता गरबा की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और इसकी विश्वव्यापी महत्वपूर्णता को दर्शाती है। इससे न केवल गरबा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार होगा, बल्कि इसकी परंपराओं को संरक्षित करने में भी मदद मिलेगी।

GARBA UNESCO

गरबा के उत्सव:
गरबा का आयोजन विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है, जो नौ रातों तक चलता है। इस दौरान लोगों में अपार उत्साह होता है और वे बड़े धूमधाम से गरबा का आनंद लेते हैं। गरबा नृत्य के साथ-साथ गरबी गीत भी गाए जाते हैं, जो इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वपूर्णता को और बढ़ा देते हैं।

गुजरात के गरबा का यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल होना भारत के सांस्कृतिक धरोहर की समृद्धता को दर्शाता है। यह मान्यता गरबा के महत्व को स्वीकार करती है और इसे वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। गरबा की परंपरा और इसके पीछे की धार्मिक आस्था को संरक्षित और प्रोत्साहित करना हमारी जिम्मेदारी है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी इस अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर का आनंद ले सकें।


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