आजीविका का साधन “बकरी पालन “

GOAT FARMING

रांची : झारखंड

@The Opinion Today

बकरी एक बहुपयोगी पशु है जिससे दुध, मांस, चमड़ा, खाद एवं रेशे (फाइबर) प्राप्त किये जा सकतें हैं। बकरे का मांस सभी धर्मो एवं जातियों के लोगों द्वारा खाया जाता है। बकरी के मांस मे वसा की मात्रा कम होती है। बकरी का दुध सुपाच्य एवं औसधिय गुणो से भरपुर होती है। बकरियों में गर्मि तथा जल की कमी को सहन करने की अदभुत क्षमता होती है। बकरियों को पालने के लिए अत्यंत विषिष्ट एवं महंगे गृह निर्माण की अवष्यकता नही होती। बकरी पालने के लिये कम खर्च एवं कम स्थान की अवष्यकता होती है। इसलिये इसे गरीब की गाय भी कहते हैं।

भारत में बकरियो की 20 प्रजातियां है। इसके अतरिक्त स्थानीय बकरियां भी उपलब्ध होती है। बकरियां दुध की अपेक्षा मांस उत्पादन के लिए अधिक पाली जाती है

1.जमनापारी : इसका मुल स्थान उ0. प्र0 इटावा है। इसका रंग सफेद या कभी कभी शरीर पर काले या चितकबरे धब्बे पाये जाते है। तोतें की चोंच जैसी नाक , लम्बे लटकते कान तथा छोटे चपटे सींग इसकी प्रमुख पहचान है। इससे लगभग 1.5 से 2 किलोग्राम दुध प्रतिदिन प्राप्त होता है। नर का वनज 50 से 60 किलोग्राम होता है। यह एक वर्ष में एक ब्यान और एक बच्चा देती है।

2.बरबरा: यह उ0. प्र0 मे अलीगढ़, आगरा, एटा एवं मथुरा जिलो में प्रमुखता से पायी जाती हैै। इसका रंग सफेद जिसमे लाल धब्बे होतें ह। कान छो संख के आकार के सींग पहले खड़े और फिर झुके होते हैं। यह बकरी दिन मे 1 से 2 किलोग्राम दुध देती है। एक ब्यांत मे 2 बच्चे तथा वष में 4 से 6 बच्चे उत्पन्न कर सकती है।

3.ब्लैक बेंगाल: बिहार ,उड़िसा ,प0 बंगाल एवं असम इस छोटी बकरी का मुल स्थान है। इसका रंग काला होता है। परंतु कत्थई रंग मे भी पाइ जाती है। छोटे एवं मध्यम सिंग उपर की तरफ होता है। यह एक ब्यांत में 2 से 3 बच्चा देती है। नर व मादा दोनो में दाढ़ी होती है

पशुशाला: बकरियों को ऐसे स्थन पर रखना चाहिए जहां उन्हे पानी का भराव एवं बरसात का प्रकोप ,लू, ठंढ़ी हवा, चोर एवं जंगली जानवरों से सुरक्षीत रखा जा सके। पशुशाला की दिसा पुर्व-पष्चिम होनी चाहिए। पषुषाला फर्स समतल या ढलान लिए हुए होना चाहिए जिससे उसमे मल मुत्र आदी इकट्टा न होने पाए गर्मियों के लिये कच्ची मिट्टी का फर्स सबसे अच्छा होता है। सिमेट और इट की छत हो तो अच्छा है अनयथा रोषन दान युक्त खपड़ैल या छप्पर प्रयोग किया जा सकता है।

चरागाह: चारागाह मे बकरियों को गाय एवं भैंस जैसे बड़े जानवर के साथ नहीं चराना चाहियें। एक हीं चारागाह में बकरियों को ज्यादा समय तक नहीं चराना चाहिए ऐसा करने से उन्हे कृमि रोग हो सकता है। ठंड में धुप निकलने के बाद ही बकरियों को चरने भेजना चाहिये बच्चा होने के दो हप्ते बाद तक बकरियों को चरने नही भेजना चाहियें।

बकरियों में होने वाली बिमारियो से बचाव के लिए लगाए जाने वाले टीका निम्नलिखित हैं:-

क्र॰ सं॰     बिमारी का नाम       टीका का नाम         टीका लगाने का समय
1 खुरहा – चपका – एफ॰ एम॰ डी॰ टीका – साल में 2 बार
2 गला घोटू – एच॰ एस॰ टीका – बरसात से पहले साल में 1 बार
3 सर्दी-खांसी – पी॰ पी॰ आर॰ – सर्दी के सुरूआत में साल में 1 बार

बकरियो में होने वाले बिमारियों में दिये जाने वाले दवाइयां निम्नलिखित हैः-

बिमारियां दवाइयों का नाम
पतला पैखाना – पेंसुटीन बोलस, इनरोफलोक्सासीन इन्जेक्सन, सी प्लॉक्स टी जेड
तेज बुखार – पारासीटामोल 500 ,एनटीबायोटीक्स, एभील
किड़े की दवा (डी॰ वर्मिंग) – एलबेन्डाजोल या फेनबेन्डाजोल हर 3 महीने पर

नोटः- कोइ भी टीका या किड़े की दवाइयां गर्भवती या बच्चे बकरियों को नही दिया जाता है।

बकरियों के बीमार होने पर कुछ देसी उपायः-

  • अगर खुरहा-चपका हो गया तो बालु में या फिर खेत के मिट्टी में दौड़ाना चाहिए।
  • सर्दी-खांसी होने पे सरसो के तेल मे अजवाइन को तल कर तेल को दो-दो चम्मच सुबह शाम पिलायें।
  • पेट में अगर कीड़ा हो गया हो तो चिरैता या नीम को पीस कर खिलाएं।
  • बकरियों को ताजा घांस न खिलाएं घांस को थोड़ी देर सुखा कर मुलायम कर लें उसके बाद खिलाएं।
  • अगर बकरी प्लास्टिक पेपर खाने लगे तो समझ लें कि उसके षरीर में नमक की कमी है और उसे नमक खिलाना चाहिए।

ज्यादा जानकारी के लिये नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें


#theopiniontoday #jharkhand_news #jharkhand_update #Goat Farming


Discover more from theopiniontoday.in

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!

Discover more from theopiniontoday.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading