रांची : झारखंड
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एशियाई जलपक्षी जनगणना 2025 : प्रवासी पक्षियों की आमद का आंकड़ा
एशियाई जलपक्षी जनगणना का कार्य 19 जनवरी तक पूरा होगा। यह एक नागरिक विज्ञान कार्यक्रम है जिसमें हर साल जनवरी में स्वयंसेवक आर्द्रभूमियों में जाकर जल पक्षियों की गिनती का कार्य करते हैं। ठंठ का मौसम शुरू होते ही झारखंड के कई जिलों में प्रवासी पक्षी अपना डेरा जमाते रहे हैं।
एशियाई जलपक्षी जनगणना (AWC) की शुरुआत 1987 में भारत में हुई। इसके बाद यह अफगानिस्तान से पूर्व की ओर जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक फैल गया। यह वैश्विक परियोजना इंटरनेशनल वॉटर बर्ड सेंसस कार्यक्रम का हिस्सा है। इसका संचालन अफ्रीका, यूरोप, पश्चिम एशिया में अंतर्राष्ट्रीय जलपक्षी गणना के लिए होता है।
दक्षिण एशियाई देशों में जलीय पक्षियों की आबादी का लेखा जोखा लिया जा रहा है। भारत के जिन नमी वाले इलाकों (वेटलैंड) में प्रवासी जलीय पक्षियों का डेरा होता था, वहां इनका आंकड़ा कम होता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से इन पक्षियों के प्रवास का तरीका बदल गया है।
हर साल की तरह इस बार भी एशियन वॉटरबर्ड सेंसस (एडब्ल्यूसी) द्वारा दक्षिण एशियाई देशों के वेटलैंड में जलीय पक्षियों की गणना शुरू है। इसके तहत इन देशों के नमी वाले इलाकों में प्रवासी पक्षियों की आमद का आंकड़ा लिया जाएगा। पक्षियों की गिनती से इनपर होने वाले जलवायु परिवर्तन के असर को जानने में मदद मिलेगी। पक्षियों की आबादी की गणना 4 से 19 जनवरी तक नेपाल और भारत समेत सभी दक्षिण एशियाई देशों में की जा रही है। भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों ने अपना ठिकाना भी बदल लिया है।
भारत में सेंट्रल एशिया, यूरोप और साइबेरिया के पक्षी प्रवास पर आते हैं। इसके अलावा भी विभिन्न प्रजाति के जलीय पक्षियों का यहां डेरा रहता है। पक्षियों का लेखा-जोखा होने से इनकी आबादी को लेकर मौजूदा स्टेटस समझा जा सकता है। साथ ही इन्हें प्रदूषण और ठिकानों का नुकसान जैसे जोखिमों की पहचान कर समाधान किया जा सकेगा। इसके अलावा इनके माइग्रेशन के पैटर्न को भी ट्रैक कर सकेंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से हो रहे शहरीकरण और निर्माण कार्यों की वजह से जल निकायों तक में परिवर्तन हुआ है। इससे प्रवासी जलीय पक्षियों के आवास खत्म हो गए। नतीजतन बाहर से आने वाले इन पक्षियों ने अपना ठिकाना बदल लिया। साथ ही मानसून, बारिश और ठंड के मौसम का अपने समय से नहीं आना भी इनके प्रवास के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है।
गणना का मकसद
- म इलाकों में जलीय पक्षियों की आबादी जानना
- लोगों के बीच जलीय जीवों के प्रति जागरुकता बढ़ाना ताकि इनका संरक्षण किया जा सके
- वार्षिक आधार पर नम इलाकों के हालात की जानकारी लेना
- प्रवास के पैटर्न में बदलाव की समस्या का समाधान खोजना
झारखंड पहुँचने वाले प्रवासी प्रक्षियों के नाम
पलामू
यहां एशियन ओपन-टेल्ड, रेड वाटर लैपिंग, यूरेशियन मूरहेन, गडवाल, नॉर्दर्न पिंटेल, लिटिल कॉर्मोरेंट, ग्रे वैगटेल, पोंड हेरोन, पाइड किंगफिशर, लिटिल रिंग्ड प्लोवर, व्हाइट ट्यूटोर्ड किंगफिशर जैसे पक्षी आते हैं।
हजारीबाग
यहां शिवहंस और सिंखपर बत्तख जैसे पक्षी आते हैं. ये पक्षी सेंट्रल एशिया के देशों से आते हैं।
रांची : हेडेड गुज, नॉर्दर्न पिनटेल, कॉमन पोचार्ड, टफटेड डक, रूडी शेल्डेक, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड और ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब।
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