मुंडारी साहित्य परिषद का ऐतिहासिक गठन

मुंडारी साहित्य परिषद

राँची : झारखंड

@ The Opinion Today

प्रेस विज्ञप्ति

दिनांक: 01 जून 2025

स्थान: रांची, झारखंड

प्रोफेसर अजित मुंडा -9431379661

मुंडारी साहित्य परिषद का ऐतिहासिक गठन – मुंडारी भाषा, साहित्य और संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में एक मील का पत्थर

आज दिनांक 01 जून 2025 को रांची स्थित स्वर्गीय पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा के आवास पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बैठक का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य मुंडारी भाषा एवं साहित्य के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार हेतु एक समर्पित संगठन – मुंडारी साहित्य परिषद – का विधिवत गठन करना था। इस अवसर पर अध्यक्षता श्री सोमा मुंडा, सेवा निवृत्त उप निदेशक, अनुसूचित जनजाति अनुसंधान संस्थान (टीआरआई), रांची ने की।

झारखंड की समृद्ध आदिवासी विरासत में मुंडारी भाषा एक महत्वपूर्ण स्तंभ रही है। यह भाषा न केवल जनजातीय जीवन की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि इसकी ध्वन्यात्मक, सांस्कृतिक और दार्शनिक संरचना अत्यंत विशिष्ट और समृद्ध है। परंतु बीते दशकों में मुंडारी भाषा के प्रयोग और प्रसार में गिरावट आई है, जिससे इसके अस्तित्व पर गंभीर संकट मंडरा रहा है।

ऐसे समय में मुंडारी साहित्य परिषद का गठन एक क्रांतिकारी पहल मानी जा रही है, जिसका उद्देश्य भाषा के विलुप्त होते शब्दों का संरक्षण, मानकीकरण, शोध, दस्तावेजीकरण, नवलेखन, सांस्कृतिक अभिलेखन, युवाओं में भाषायी चेतना का विकास एवं आदिवासी साहित्य की समृद्ध परंपरा को पुनर्स्थापित करना है।

बैठक में उपस्थित विद्वानों, लेखकों, शोधकर्ताओं और समाजसेवियों ने एकमत से परिषद की कार्यकारिणी का गठन निम्नलिखित रूप में किया:

मुंडारी साहित्य परिषद – कार्यकारिणी समिति

अध्यक्ष:

प्रो. सत्यनारायण मुंडा, पूर्व कुलपति, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची – एक प्रख्यात शिक्षाविद् एवं आदिवासी चिंतक जिन्होंने जनजातीय शिक्षा, भाषा और संस्कृति पर कई दशकों तक शोध कार्य किया है।

 उपाध्यक्ष (तीन सदस्य):

  • डॉ. बिरेन्द्र कुमार सोय – साहित्यकार एवं सामाजिक विचारक
  • श्रीमती जयमुनी बडयऊद – महिला नेतृत्व की प्रेरणा स्रोत एवं मुंडारी संस्कृति की संवाहिका
  • श्री मनय मुंडा – सामाजिक कार्यकर्ता एवं युवा नेतृत्वकर्ता

सचिव:

  • डॉ. अजीत मुंडा, युवा शिक्षाविद् एवं आदिवासी भाषा शोधकर्ता, जिनकी सक्रियता भाषा संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय रही है।

 उप सचिव (चार सदस्य):

  • श्री जुरा होरो, डॉ. किशोर सुरिन, श्री विशेश्वर मुंडा, श्री करम सिंह मुंडा

 कोषाध्यक्ष:

  • डॉ. पार्वती मुंडू, वरिष्ठ शिक्षिका एवं महिला सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक।

अंकेक्षक:

  • डॉ. जुरन सिंह मानकी, जिन्होंने मुंडा समाज की आर्थिक संरचना पर विस्तृत अध्ययन किया है।

 विधिक सलाहकार:

  • श्री सुभाष चंद्र कोनगाड़ी, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं आदिवासी अधिकारों के पैरोकार।

प्रस्तावित गतिविधियाँ एवं कार्ययोजना:

बैठक में यह निर्णय लिया गया कि परिषद निम्नलिखित क्षेत्रों में योजनाबद्ध ढंग से कार्य करेगी:

  1. भाषा संरक्षण एवं मानकीकरण – विलुप्त हो रहे मुंडारी शब्दों का संकलन और शब्दकोश का निर्माण।
  2. साहित्य सृजन एवं प्रोत्साहन – कविता, कहानी, लोकगीत, नाटक आदि विधाओं में नवलेखन को प्रोत्साहन।
  3. शोध एवं प्रलेखन – मुंडारी भाषा पर अकादमिक शोध को बढ़ावा देना एवं शोध पत्रिकाओं का प्रकाशन।
  4. कार्यशालाएँ व संगोष्ठियाँ – स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय स्तर पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन।
  5. युवा सहभागिता – युवाओं को भाषा आंदोलन से जोड़ने हेतु विशेष अभियान।
  6. डिजिटल अभिलेखागार – मुंडारी साहित्य, ऑडियो-विजुअल सामग्री और मौखिक परंपराओं का डिजिटलीकरण।
  7. सांस्कृतिक संरक्षण – परंपरागत लोककलाओं, नृत्य-गीत, रीति-रिवाजों एवं धार्मिक धरोहर का दस्तावेजीकरण।

सामूहिक संकल्प और भविष्य की दिशा

बैठक में उपस्थित सभी सदस्यों ने यह सामूहिक संकल्प लिया कि मुंडारी भाषा और संस्कृति की गरिमा को पुनर्स्थापित करने हेतु सतत, संगठित एवं समर्पित प्रयास किए जाएंगे। परिषद आने वाले समय में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर संवाद स्थापित कर, अकादमिक एवं सामाजिक संस्थाओं से समन्वय कर कार्य करेगी।

इस अवसर पर वक्ताओं ने स्व. डॉ. रामदयाल मुंडा के योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि परिषद की स्थापना उनके विचारों और कार्यों की जीवंतता को आगे बढ़ाने का माध्यम बनेगी।

यह आयोजन न केवल एक संगठन के गठन की घोषणा थी, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत है। मुंडारी साहित्य परिषद, मुंडा समाज की भाषिक अस्मिता की पुनर्प्राप्ति की दिशा में एक निर्णायक कदम है।

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