रांची : झारखंड
@ The Opinion Toda
भूख खाली पेट से कहीं अधिक जटिल है। भूख एक बहुआयामी समस्या है। भूख मिटाने के लिए शांति जरूरी है। दुनिया भर में हर साल 28 मई को विश्व भूख दिवस मनाया जाता है। विश्व भूख दिवस 2025 की थीम “लचीलेपन के हिसाब से बुवाई करना” है। यह दिवस लाखों लोगों द्वारा सामना किए जा रहे मौन संघर्ष के बारे में जागरूकता बढ़ाने का माध्यम है।
तकनीकी विकास के बावजूद भूख लगातार एक मुद्दा बनी हुई है। विश्व भूख दिवस संघ के अनुसार, 2022 में, 74 देशों में 34.3 करोड़ से अधिक लोग भारी खाद्य असुरक्षा के अनुभव से गुजरे, जो कि मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधाओं के कारण है। विश्व भूख दिवस संघ के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों में भूख और कुपोषण में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
ऐसा नहीं है कि देश में भोजन की आपूर्ति की कमी है, हम सभी के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करते हैं। फिर भी, 10 फीसदी से अधिक आबादी भूखे पेट सोती है। यह विशेष रूप से निराशाजनक है कि अधिक आय वाले देशों में 40 फीसदी भोजन बर्बाद हो जाता है, जहां जरूरत से दोगुना भोजन उत्पादित होता है।
2012 में, संयुक्त राष्ट्र ने जीरो हंगर कार्यक्रम शुरू किया, जिसका लक्ष्य 2030 तक दुनिया को भूख से मुक्त करना है। एक्शन अगेंस्ट हंगर के मुताबिक, 50 फीसदी बच्चों की मौत भूख के कारण हो जाती है। दुनिया भर में लगभग 11 में से एक व्यक्ति हर रात भूखा सोता है। 2024 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर रहा।
मार्च 2021 में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा जारी “खाद्य अपव्यय सूचकांक रिपोर्ट 2021” वाली रिपोर्ट के मुताबिक भारत में घरेलू खाद्य अपशिष्ट का लगभग 50 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है, जो कई विकसित देशों की तुलना में कम है।
ज्यादा जानकारी के लिये नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें
खाद्य अपव्यय सूचकांक रिपोर्ट 2021
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