UPUL International Journal for Multidisciplinary Research
Vol 4 (1) 2025
Author:-
Dr. Prashant Jaiwardhan,
Asst. Professor Jharkhand Rai University
Media Studies
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समय आ गया है दीन दयाल जी की विचारधारा से जुड़े विचारकों की एक नई पीढ़ी विकसित करें।
हमारी संस्कृति संपूर्ण जीवन, संपूर्ण सृष्टि का समग्र विचार करती है. यही एकात्म भाव व्यष्टि से समष्टि की रचना करता है। यही पंडित दीनदयाल जी के विकास का व्यापक पक्ष है, सार्वभौम है, प्रासंगिक है. इसमें श्रीकृष्ण के वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा से लेकर आज के ग्लोबलाइज्ड युग का समावेश है।
दीनदयाल उपाध्याय को भारत में गरीब-दलितों की आवाज भी कहा जाता था। उनका सपना था कि देश की हर जन कल्याणकारी योजना का लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है। “समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के लिए योजनाएं बननी चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे ऋषि-राजनेता रहे जिन्होंने राजनैतिक चिंतन के लिए एकात्म मानवदर्शन का सूत्र दिया और शासन की नीतियां बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। उनका मानना था कि राजनीति सत्ता के लिए नहीं अपितु समाज की सेवा के लिए हो, स्वतंत्रता के साथ भारत राष्ट्र की यात्रा भारतीय दर्शन के अनुरूप होनी चाहिए। उनके विकास का आधार एकात्म मानव दर्शन है। इसमें संपूर्ण जीवन की रचनात्मक दृष्टि समाहित है. उन्होंने विकास की दिशा को भारतीय संस्कृति के एकात्म मानवदर्शन के मूल में खोजा।
पंडित जी ने भारत के भविष्य की कल्पना वेदों में वर्णित चार पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के आधार पर की थी. यह चारों पुरुषार्थ मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर के संतुलन से संभव है. इससे ही एक आदर्श समाज और आदर्श राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। दीनदयाल जी का मानना था कि अर्थव्यवस्था जितनी विकेन्द्रीकृत होगी उतनी नीचे तक जाएगी और यही स्वदेशी भाव के साथ सृजन का आधार होगा। दीनदयाल जी ने विकास को लेकर कल्पना की थी कि विश्व का ज्ञान और आज तक की अपनी संपूर्ण परंपरा के आधार पर हम गौरवशाली भारत का निर्माण करेंगे।
एकात्म मानववाद : व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि तथा परमेष्ठी
एकात्म मानववाद व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है। यह प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग का समर्थन करता है जिससे कि उन संसाधनों की पुनः पूर्ति की जा सके। एकात्म मानववाद न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता को भी बढ़ाता है। यह सिद्धांत विविधता को प्रोत्साहन देता है अतः भारत जैससे विविधतापूर्ण देश के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त है। कात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है एवं ‘अंत्योदय’ अर्थात समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है।
एकात्म मानववाद के 60 वर्ष :
- एकात्म मानव दर्शन क्लिष्ट दर्शन नहीं है, भारतीय चिंतन का निचोड़ है। एकात्म मानववाद का एक ही सूत्र है और वह है एक चेतना।
- पंडित जी के एकात्म मानववाद के अनुसार व्यक्ति व्यक्ति का विरोधी न होकर सहयोगी होना चाहिए। जो हमारी सभ्यता और संकस्कृति के भीतर ही संभव है।
- पंडित जी यह भी मानते थे की प्रकृति संस्कृति की अवहेलना नहीं करती बल्कि प्रकृति में जो भाव श्रिष्टि है उनको बढ़ावा देकर दूसरी प्रकृतियों की बाधा को रोकना ही संस्कृति है। वह कहते थे की किसी भी राष्ट्र की एक आत्मा होती है। उससे अलग जाकर विकास एक विकृति को जन्म देता है।
यतो अभुदय निः श्रेयस संसिद्धि स धर्मः जिस कार्य या सिद्धांत के द्वारा अभ्युदय (भौतिक समृद्धि) और निःश्रेयस (पारलौकिक कल्याण) दोनों प्राप्त होते हैं, वही धर्म है। यह वाक्य बताता है कि धर्म वह है जो व्यक्ति को इस संसार में सफल जीवन जीने में मदद करे और साथ ही उसे मोक्ष की ओर ले जाए। अतोऽभ्युदय-निःश्रेयस सिद्धिः स धर्मः, वास्तव में, वैशेषिक दर्शन के संस्थापक महर्षि कणाद के अनुसार धर्म को परिभाषित करने वाला एक दोहा है – वैदिक-हिंदू दर्शन या जीवन के दृष्टिकोण के दायरे में छह प्रमुख विचारधाराओं में से एक, और जिसे परमाणुवाद के अनुभववादी स्कूल के रूप में जाना जाता है, जो पदार्थ, स्पष्ट ब्रह्मांड, परमाणु और विशेष रूप से परमाणु से संबंधित मुद्दों की बारीकी से व्याख्या, चर्चा और विश्लेषण करता है।
महर्षि कणाद द्वारा इस लघु दोहे के माध्यम से दी गई यह परिभाषा धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्याओं में से एक मानी जाती है, जो न केवल धर्म शब्द के मूल में निहित मूल भावना को प्रकट करती है, बल्कि जीवन में धर्म के उद्देश्य और महत्व को भी स्पष्ट करती है। इसके साथ ही, कणाद की यह परिभाषा धर्म के बारे में पूर्वी दृष्टिकोण को – विशेष रूप से उससे संबंधित महान भारतीय दृष्टिकोण को – स्पष्ट रूप से प्रकट करती है। इस कथन में सम्मिलित केवल दो शब्दों की समीक्षा के आधार पर इसका अच्छी तरह से विश्लेषण, बोध और समझ हो सकती है, जो वास्तव में महर्षि कणाद द्वारा की गई संपूर्ण घोषणा के केंद्र बिंदु हैं। इन दो शब्दों की समीक्षा से दोहे की वास्तविकता को भी अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
इस दोहे में दो शब्द प्रमुखता से उभर कर आते हैं: अभ्युदय और निःश्रेयस। अभ्युदय का अर्थ है मनुष्य का उत्थान, प्रगति या विकास। यह निस्संदेह उसकी समृद्धि के लिए समर्पित है। दूसरी ओर निःश्रेयस शाश्वत आनंद – संतोष के साथ अनंत सुख को प्रकट करता है, जो वास्तव में मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण – आत्मा की मुक्ति की स्थिति है।
एकात्म मानववाद” आज के दौर में ज्यादा प्रासंगिक :
दीनदयाल उपाध्याय को “एकात्म मानववाद” की उनकी अवधारणा के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की, जहाँ आर्थिक नीतियाँ, सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिक विचारों को प्रतिबिंबित करेंगी, जिसमें आत्मनिर्भरता, विकेंद्रीकरण और सामाजिक सद्भाव पर जोर दिया जाएगा। दीनदयाल उपाध्याय की “एकात्म मानववाद” की अवधारणा, भारत में 20वीं सदी के मध्य में विकसित एक दार्शनिक ढांचा है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक आयामों को मिलाकर मानव विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करना है।
एकात्म मानववाद का मूल विचार मानवता को एक एकीकृत रूप में देखना है, जिसमें व्यक्तियों और समाज की परस्पर संबद्धता पर जोर दिया जाता है। दीनदयाल उपाध्याय ने तर्क दिया था कि आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ संरेखित किया जाना चाहिए, जो भौतिक प्रगति और नैतिक अखंडता के बीच संतुलन को बढ़ावा देता है। यह दृष्टिकोण एक विकेन्द्रीकृत, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की वकालत करता है जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बनाए रखते हुए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है।
- दीन दयाल जी की विचारधारा से जुड़े विचारकों की एक नई पीढ़ी विकसित करें।
- एकात्म मानववाद की तुलना अन्य सामाजिक सिद्धांतों (पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद) से करें।
- श्री अरबिंदो की एकात्म शिक्षा के साथ समानताओं का पता लगाएं।
- एकात्म मानव दर्शन के संदर्भ में सतत विकास लक्ष्यों पर आधारित मूल्य शिक्षा हस्तक्षेप का प्रस्ताव करें।
- अंत्योदय के तहत सरकारी नीतियों का मूल्यांकन करें।
- शैक्षणिक, ग्रामीण और कॉर्पोरेट हलकों में जागरूकता पैदा करें।
- कार्यशालाओं और कक्षाओं के माध्यम से युवा पीढ़ी में विचारों को आत्मसात करें।
- बहुविषयक अनुसंधान के माध्यम से विचारधारा की जांच करें।
- ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में विचारों का प्रसार करें।
- कार्यक्रम को शिक्षक समुदाय से परिचित कराएं।
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Keywords: Integral Humanism, Deendayal Upadhayaya, Ekatma Manav Darshan
#60YearsOfEkatmaManavDarshan
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