रांची : झारखंड
@ The Opinion Today
बिहार में वज्रपात होने से हो रही लगातार मौतों पर NGT ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है। एनजीटी ने फिलहाल इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार के प्राधिकरणों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। 2016 से अब तक बिहार में बिजली गिरने की घटनाओं में 2,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। आर्थिक सर्वेक्षण और राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार यह आंकड़ा अप्रैल 2025 तक 2,446 तक पहुंच चुका है, जबकि लाइटनिंग रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार 2014 से 2024 के बीच 2,937 लोगों की जान गई। बिजली गिरने से होने वाली मौतों में सबसे अधिक प्रभावित जिले गया, औरंगाबाद, रोहतास, पटना, नालंदा, कैमूर, भोजपुर और बक्सर रहे हैं।
NGT की पीठ ने अपनी रिपोर्ट में बिहार में गायब होते ताड़ के पेड़ और वज्रपात के दौरान होने वाली मौतों पर सवाल उठाया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई मामलों में ये घटनाएं उन इलाकों में हुईं, जहां पहले ताड़ के पेड़ पाए जाते थे लेकिन अब उनकी संख्या में तेज गिरावट आई है। माना जाता है की ताड़ के पेड़ बिजली को जमीन तक सुरक्षित पहुंचाने में मदद करते हैं और इनके कटने से बिजली गिरने की घटनाएं अधिक घातक हो गई हैं।
बिहार में ताड़ के पेड़ क्यों कम हो गए ?
बिहार में ताड़ के पेड़ कम होने का मुख्य कारण ताड़ी पर प्रतिबंध और आर्थिक महत्व का घटना है। इसके कारण, ग्रामीणों ने ताड़ के पेड़ काटना शुरू कर दिया, जिससे इनकी संख्या में कमी आई है। 2016 में बिहार में ताड़ी (ताड़ के रस से बनने वाली शराब) पर प्रतिबंध लगने के बाद, ताड़ के पेड़ों का आर्थिक महत्व कम हो गया। आर्थिक महत्व कम होने के कारण, ग्रामीणों ने ताड़ के पेड़ों को काटना शुरू कर दिया, खासकर उन पेड़ों को जो ऊंचे और रस से भरे हुए थे। ताड़ के पेड़ों का कम होना एक चिंता का विषय है क्योंकि इससे न केवल पारंपरिक व्यवसाय प्रभावित हो रहा है, बल्कि बिजली गिरने से होने वाली मौतों का खतरा भी बढ़ रहा है।
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अपील:
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने ताड़ और खजूर के इन पेड़ों को बचाने की सलाह दी है। बीएसडीएमए ने राज्य में आकाश से बिजली गिरने से हर साल होने वाली सैकड़ों मौतों पर अध्ययन किया है. इस अध्ययन में पाया गया है कि ताड़ जैसे ऊंचे पेड़ वज्रपात के समय लोगों की जान बचाते हैं। ताड़ के पेड़ की वजह से आकाशीय बिजली ज़मीन या खेतों में नहीं गिरती है और जिससे वहां मौजूद लोगों को ख़तरा नहीं होता है. ताड़ के पेड़ एक तरह से तड़ित चालक का काम करते हैं। यानी जिन पेड़ों को ऐतिहासिक रूप से कम उपयोगी माना जाता है, वह लोगों की जान बचाते हैं।
बीएसडीएमए के आंकड़े के मुताबिक़, बिजली गिरने से सबसे अधिक 86 फ़ीसदी लोग ग्रामीण इलाक़ों में मारे गए. खेती-किसानी या इससे जुड़े काम करने वाले लोग वज्रपात से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
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