रांची : झारखंड
@ The Opinion Today
नागा शब्द संस्कृत के ‘नागा’ शब्द से निकला है, जिसका अर्थ ‘पहाड़’ होता है। कच्छारी भाषा (असम राज्य के कुछ हिस्सों में बोली जाने वाली एक ब्रह्मपुत्री भाषा है ) में ‘नागा’ का मतलब ‘एक युवा बहादुर सैनिक’ होता है।
ऐतिहासिक मान्यता है कि नागा परंपरा की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश के चार कोनों में चार पीठों का निर्माण किया इन पीठों को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने सशस्त्र शाखाओं यानी अखाड़ों की स्थापना की थी। इन अखाड़ों के सैनिकों को धर्म रक्षक अथवा नागा कहा गया।
इतिहासकार सिंधु घाटी की मोहनजोदड़ो में खुदाई में पाई गई मुद्रा और उस पर बने पशुपति की मूर्ति में अंकित चिन्ह को इनकी प्राचीनता का प्रमाण बताते हैं। नागा साधु भगवान शिव और शक्ति के भक्त होते हैं।
नागा साधुओं के बारे में 5रोचक बातें
- नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले इन्हें ब्रह्मचार्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है।
- नागा साधु एक दिन में केवल 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं।
- नागा साधु बनने में 12 साल लग जाते हैं, जिसमें 6 साल को महत्वपूर्ण माना गया है।
- नागा साधु वस्त्र नहीं पहनते।
- नागा साधु बनने की प्रक्रिया किसी अखाड़े में दीक्षा लेने से शुरू होती है।
- नागा सन्यासी 16 नहीं 17 श्रृंगार करते हैं।
नागाओं के लिए भी श्रंगार का मतलब वही होता है, जो किसी आम महिला के लिए होता है, मगर इसका मकसद दिखावा नहीं, बल्कि उस साज-श्रंगार को अपने भीतर महसूस करना होता है। अपने ईष्टदेव शिव को प्रसन्न करना होता है. नागाओं की दुनिया में 16 श्रृंगार की परंपरा वही है, बस इनके साधन अलग है।
जान लीजिए नागा साधुओं के 17 श्रृंगार
1- बिंदी- की जगह तिलक
2- सिंदूर- की जगह चंदन
3- मांगटीका- गुथी हुईं जटाएं
4- काजल- काजल
5- नथ- चिमटा डमरू या कमंडल
6- हार- रुद्राक्ष की माला
7- कर्णफूल- कुंडल
8- मेहंदी- रोली का लेप
9- चूड़ियां- कड़ा
10- बाजूबंद- रुद्राक्ष या फूलों की माला
11- अंगूठी- अंगूठी
12- केश सज्जा- पंचकेश
13- कमरबंद- रुद्राक्ष या फूलों की माला
14- पायल- लोहे या चांदी का कड़ा
15- इत्र- चंदन
16- वस्त्र- की जगह लंगोट पहनते हैं।
17वें श्रृंगार का रहस्य नागा कभी प्रगट नहीं करते।
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