रांची : झारखंड
@The Opinion Today
सर्द ऋतु की विदाई व बसंत ऋतु की आगाज को लेकर पलाश पुष्प के रंगों में रंगे प्राकृतिक अब सर्दऋतु की विदाई के साथ ही प्रकृति का सौंदर्य धीरे-धीरे बदलने लगा है। ठंडी रातों में हल्की गर्माहट घुलने लगी है और सुबह की खुशनुमा मौसम एक नई ताजगी का एहसास कराने लगी है। पलाश पुष्प खिलने से यह संकेत मिलता है कि बसंत ऋतु ने दस्तक दे दी है।जिससे यहां के जंगलों पहाड़ों और मैदानों का इस मौसम में एक अलग ही नजारा होता है जो देखते ही बनता है।पलाश पुष्प लोगों को मोहित कर अपनी ओर आकर्षित करते रहता है। पलाश पुष्प के खिलने और प्राकृतिक के स्पर्श होते ही पूरा प्रदेश रंगों के उत्सव में शराबोर हो उठता है। सुखी प्रकृति में जब आग का पलाश खिलता है, तो ऐसा लगता है मानो जंगलों में लाल और नारंगी रंग की ज्वाला भड़क उठी हो। यह नजारा इतना अद्भुत होता है कि इसे देखने के लिए पर्यटक, फोटोग्राफर और प्रकृति प्रेमी दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं।
पलाश पुष्प से सजे पेड़ों की टहनियां और धरातल पर फैली लाल नारंगी पंखुड़ियों की चादर एक स्वर्गिक दृश्य के साथ अंगड़ाईयाँ ले रही है।यह पुष्प प्रत्येक वर्ष प्रायः माह फरवरी के मध्य से मार्च माह के अंत तक अपनी नयसर्गीक सुंदरताओं के साथ प्रकृति को अपने में समेटे रहती है। इन महीनों में खेतों, पहाड़ो, जंगलों और नदियों के किनारे पलाश पुष्प मनमोहक अदाएं बिखेरती रहती है।जिससे इस मौसम में चारो ओर लाल, नारंगी, और पीले रंगों का एक शानदार घटा देखने को मिलता है।पलाश पुष्पों की यह बहार सिर्फ नयन्न को ही नहीं बल्कि आत्मा को भी तृप्त कराते हुए एक अलग सुकून का एहसास कराती है।इन पुष्पों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो जैसे प्रकृति ने होली खेलने की सारी तैयारी पूर्ण कर ली हो।
पलाश पुष्प न सिर्फ देखने में सुंदर हैं, बल्कि इन्हें कई पारम्परिक कार्यों के उपयोग में भी लाया जाता है।यह पुष्प आदिवासी समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है।होली के अवसर पर प्राकृतिक रंग तैयार करने में इस्तेमाल किया जाता है।बसंत ऋतु के साथ पलाश पुष्प की सुंदरता देखने लायक होती है। पलाश पुष्प से ढके पेड़ पूरे परिदृश्य को एक जादुई रूप देती है।जिसकी आग की लपटें देखते ही बनता है।यह दृश्य से एक अविस्मरणीय अनुभव होता है।आदिवासी संस्कृति में खास कर झारखंडी आदिवासियों में पलाश को एक अगल स्थान देते हुए इसे पवित्र मान कर अपने कई धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग करते हुए लोकगीतों, लोकनृत्यों और परंपराओं में भी प्राथमिकता देते हैं।प्रकति की यह रंगीन छटा हर किसी के दिल को छू रही है।यह प्राकृतिक दृश्य जीवन और ऊर्जा का प्रतीक है। पलाश के इन रंगों में झारखंड की आत्मा बसती है।क्योंकि पलाश पुष्प सबसे अधिक झारखण्ड राज्य में पाया जाता है। जिससे राज्य व राज्यवासियों को अलग पहचान दिलाता है।
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