कोयला क्षेत्र में आयात में उल्लेखनीय कमी

coal ming

रांची : झारखंड

@The Opinion Today

आयात में कमी बनेगा आत्मनिर्भर और विकसित भारत का महत्वपूर्ण आधार

भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में 20 मार्च 2025 को एक बिलियन टन (BT) कोयला उत्पादन को पार करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की- जो पिछले साल के 997.83 मिलियन टन (एमटी) से 11 दिन पहले है।
कोयला राष्ट्रीय ऊर्जा मिश्रण में 55% योगदान देता है और कुल बिजली उत्पादन में इसका 74% से अधिक का योगदान है। पीएसयू एवं निजी क्षेत्र की 350 से अधिक कोयला खदानों में लगभग 5 लाख खदान श्रमिक कार्यरत हैं।

देश की आधी से अधिक बिजली की आपूर्ति में कोयले की सीधी भूमिका है। नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के बावजूद, कोयला आधारित ताप विद्युत की हिस्सेदारी 2030 तक 55% तक होने का अनुमान है।

कोयला क्षेत्र का प्रमुख योगदान :

रेलवे और राजस्व: रेलवे माल ढुलाई में कोयले का योगदान सबसे बड़ा है। कुल माल ढुलाई आय में कोयले की औसत हिस्सेदारी लगभग 49% है। वित्त वर्ष 2022-23 में यह 82,275 करोड़ रुपये है। यह राजस्व योगदान रेलवे की कुल आय का 33% से अधिक है।

सरकारी आय: कोयला क्षेत्र रॉयल्टी, जीएसटी और अन्य शुल्कों के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों को सालाना 70,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में रॉयल्टी संग्रह 23,184.86 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।

रोजगार: कोल इंडिया लिमिटेड में 239,000 से अधिक श्रमिकों को तथा संविदा एवं परिवहन भूमिकाओं में हजारों लोगों को रोजगार प्रदान करने में कोयला क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है।

सीएसआर उत्तरदायित्व : सीएसआर पहलों को प्राथमिकता देते हुए पिछले पांच वर्षों में सीएसआर उत्तरदायित्व के तहत औसत वार्षिक व्यय 608 करोड़ रुपये रहा है। उल्लेखनीय है कि अकेले कोल इंडिया लिमिटेड ने सीएसआर गतिविधियों के लिए सालाना औसतन 517 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। 90% से अधिक व्यय सामाजिक-आर्थिक विकास पर किया गया है, जिसमें कोयला उत्पादक क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, जलापूर्ति और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। आर्थिक विकास पिछले पांच वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन 18,255 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय में पर्याप्त निवेश से कोयला क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में बुनियादी ढांचे के विकास और संसाधन अनुकूलन में मदद मिली है।

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खदानों का सुरक्षा के लिए पोर्टल

केंद्रीय कोयला मंत्रालय के “सुरक्षा स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली ऑडिट” के दिशा-निर्देशों के अनुसार, सुरक्षा ऑडिट हर साल किए जाते हैं। 17 दिसंबर 2024 को, “राष्ट्रीय कोयला खान सुरक्षा रिपोर्ट पोर्टल” लॉन्च किया गया है , जिसमें ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए सुरक्षा ऑडिट मॉड्यूल शामिल किया गया है।

खदानों सुरक्षा के विभिन्न उपाय:

खान सुरक्षा महानिदेशालय ने कोयला खान विनियम 1957 को कोयला खान विनियम 2017 में संशोधित किया है, जिसमें आधुनिकीकरण, मशीनीकरण, आपातकालीन प्रतिक्रिया और निकासी योजना को शामिल किया गया है। खान सुरक्षा के लिए विस्फोट-मुक्त खनन तकनीकों का प्रयोग किया जा है जैसे : सतत खननकर्ता, भूमिगत खदानों में पावर्ड सपोर्ट लांगवॉल (पीएसएलडब्लू), सतही खननकर्ता, ओपनकास्ट (ओसी) खदानों में एक्सेन्ट्रिक/वर्टिकल रिपर तथा हाइब्रिड हाई वॉल खनन। रियल टाइम

मोनिटरिंग : पर्यावरणीय टेलीमॉनीटरिंग प्रणाली (ईटीएमएस) और गैस क्रोमैटोग्राफ द्वारा यूजी खदान पर्यावरण की वास्तविक समय निगरानी का उपयोग त्वरित और सटीक खदान वायु नमूने के लिए किया जाता है।

स्तर नियंत्रण: मशीनीकृत छत बोल्टिंग व्यवस्था अर्थात यूनिवर्सल ड्रिलिंग मशीन (यूडीएम), क्वाड और ट्विन बोल्टर प्रणाली, साथ ही स्तर निगरानी के लिए रेजिन कैप्सूल और उन्नत उपकरण प्रयोग में लाये जा रहे हैं।

कोयला क्षेत्र की निरंतर वृद्धि और लचीलापन भारत की ऊर्जा रणनीति, आर्थिक विकास और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।कोयला क्षेत्र 2047 तक आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में भारत के मार्ग का आधार बना रहेगा।

धूल नियंत्रण: धूल को कम करने के लिए ट्रक पर लगे फॉग कैनन और स्प्रिंकलर-कम-मिस्ट स्प्रे जैसी धूल दमन प्रणालियां।

प्रशिक्षण: हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी (एचईएमएम) ऑपरेटरों के लिए सिम्युलेटर-आधारित प्रशिक्षण और वर्चुअल रियलिटी (वीआर) प्रशिक्षण कार्यक्रम।

निगरानी: ढलान और ओवरबर्डन (ओबी) डंप स्थिरता की निगरानी के लिए टोटल स्टेशन, 3डी टेरेस्ट्रियल लेजर स्कैनिंग (टीएलएस), और ढलान स्थिरता रडार जैसी आधुनिक तकनीकें। जीपीएस आधारित ऑपरेटर स्वतंत्र ट्रक डिस्पैच सिस्टम (ओआईटीडीएस), एचईएमएम की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए बड़े ओसी में जियो-फेंसिंग।


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