रांची : झारखंड
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जानिए कौन बन सकता है नीड बेस्ड प्रोफेसर?
प्रोफेसर और प्रेक्टिस और नीड बेस्ड प्रोफेसर के बीच क्या है अंतर।
रांची विश्वविद्यालय में 299 नीड बेस्ड सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति की जानी है। 17 जनवरी 2005 से डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन का कार्य भी प्रारंभ हो जाएगा। देश के कई विश्वविद्यालयों में इस व्यवस्था के तहत सहायक प्राध्यापक पद पर प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस ( नीड बेस्ड) प्राध्यापकों की नियुक्ति की जा रही है। आइए जानते है यह क्या है और इसके लिए संबंधित अहर्ता क्या क्या हैं।
NEP 2020
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उच्च शिक्षण संस्थानों में उद्योग और अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए कौशल आधारित शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है।एनईपी का प्रयास व्यावसायिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के साथ एकीकृत करने, उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देने की सिफारिश करता है । युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए, शिक्षार्थियों को नियोक्ताओं की तरह सोच विकसित करने और नियोक्ताओं को शिक्षार्थियों की तरह व्यावहारिक करने के उद्देश्य से यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक के पदों पर “प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस” की वकालत की है।
इन्हें नीड बेस्ट टीचर भी कहा जाता है। यह प्रयास उद्योग और अन्य पेशेवर विशेषज्ञता को शैक्षणिक संस्थानों में लाने के लिए एक नई पहल है ताकि वास्तविक दुनिया की प्रथाओं और अनुभवों को कक्षाओं में लाने में मदद मिले और उच्च शिक्षा संस्थानों में संकाय संसाधनों में भी वृद्धि हो।
बदले में, उद्योग और समाज को प्रासंगिक कौशल से लैस प्रशिक्षित स्नातकों से लाभ होगा।
प्रोफ़ेसर ऑफ प्रैक्टिस POP कौन हैं?
यूजीसी के नियमों के अनुसार विशिष्ट पेशे या भूमिका में कम से कम 15 वर्षों का विशेषज्ञता भरा अनुभव होना आवश्यक है।
इंजीनियरिंग, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, उद्यमिता से लेकर वाणिज्य, सामाजिक विज्ञान, मीडिया, साहित्य, ललित कला, सिविल सेवाएँ, सशस्त्र बल,कानूनी पेशा, सामुदायिक विकास, पंचायती राज, ग्रामीण विकास, जल संरक्षण विकास, जैविक खेती, लघु हरित ऊर्जा सिस्टम, नगरपालिका योजना, सामुदायिक भागीदारी, जेंडर बजटिंग/योजना,आदिवासियों और सार्वजनिक प्रशासन का समावेशी विकास जैसे विषयों का ज्ञान रखने और इन क्षेत्रों में कार्य का लंबा अनुभव वालों को नीड बेस्ड शिक्षक बनने का मौका मिलता है।
इस पद के लिए औपचारिक शैक्षणिक योग्यता आवश्यक नहीं हैं । इसके अलावा अकादमिक प्रकाशनों से भी छुटी मिली हुई है।
उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रैक्टिस के प्रोफेसरों की संख्या संस्थान में स्वीकृत पदों के 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
कर्तव्य और जिम्मेदारी।
- पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या विकास और निर्माण में योगदान।
- संस्थागत नीतियों के अनुसार नए पाठ्यक्रम और व्याख्यान ।
- नवाचार और उद्यमिता परियोजनाओं में छात्रों को प्रोत्साहन और मार्गदर्शन।
- इंडस्ट्री अकादमी सहयोग पर विशेष ध्यान ।
- संस्थान के नियमित संकाय सदस्य के साथ मिलकर
- कार्यशाला, सेमिनार, विशेष व्याख्यान और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
- विश्वविद्यालय और कॉलेजों के नियमित शिक्षकों के साथ शोध कार्य में संलग्न होना।
महत्वपूर्ण बिंदु।
- प्रैक्टिस प्रोफेसर की नियुक्ति एक निश्चित अवधि के लिए होती है।
- यह नियुक्ति स्वीकृत पदों से भिन्न होती है।
- यूनिवर्सिटी अथवा कॉलेज में इससे स्वीकृत पदों की संख्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
- प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस का पद शिक्षण पेशे से जुड़े लोगों
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