रांची : झारखंड
@The Opinion Today
डंग बीटल असल मायनों में पर्यावरण के नायक हैं। इन्हें गुबरैला भी कहा जाता है। गाँव, जंगल या खेत में गोबर को लुढ़काते दिखाई पड़ते ये ये साधारण कीट मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने एवं ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मददगार हैं।
भारत में इनकी सैकड़ों प्रजातियाँ हैं, लेकिन शहरीकरण, रसायनों के बढ़ते उपयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण इनकी संख्या घटती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में ये छोटे कीट किसी हीरो से कम नहीं हैं। छोटे आकार के बावजूद पारिस्थितिकी तंत्र में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वे गोबर को जमीन में दबाकर न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं, बल्कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में भी मदद करते हैं।
हाल ही में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार डंग बीटल्स — यानी गोबर खाने वाले कीट — गोबर से निकलने वाली इन गैसों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
दुनिया भर में गोबर बीटल्स की 5,000 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। अकेले भारत में गोबर बीटल्स की लगभग 500 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
लेकिन प्रकृति के इस ग्रीन हीरो के सामने नयी मुश्किलें खड़ी है बढ़ते शहरीकरण और कंक्रीट के जंगल और कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण गोबर बीटल्स के आवास नष्ट हो रहे हैं। इसके अलावा, पशुओं को दिए जाने वाले एंटी-पैरासाइटिक दवाओं के अवशेष गोबर में मौजूद होते हैं, जो गोबर बीटल्स के लिए हानिकारक हैं। बदलते समय , खेती के तरीकों, यंत्रों के बढ़ते प्रयोग ने डंक बीटल्स की संख्या में भारी कमी लायी है।
ये कीट किसानों के अच्छे मित्र है जो खेत की मिट्टी को उलट-पलट कर प्राकृतिक जुताई करते हैं, गोबर को डीकंपोज कर खाद में बदलते हैं, और खेतों में कई प्रकार की बीमारियों को रोकने में मदद करते हैं।
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