रांची : झारखंड
@The Opinion Today
भारत के साथ विश्व के कई देश भी भीषण गर्मी झेल रहे हैं। सूर्य की तेज किरणें जमीन के साथ पानी का ताप भी बढ़ा रहे हैं।
जलताप में बढ़ोतरी मौसम बदलाव का बड़ा कारण बन रहा है। मृदा ताप में बढ़ोतरी का असर अन्न उत्पादन पर पड़ रहा है। इसी बीच ब्रिटेन में एक नए प्रयोग को मंजूरी दी जा रही है।जिसके जरिए पृथ्वी पर पढ़ने वाली सूरज की किरणों को कम किया जायेगा। यह वैज्ञानिक तकनीक सोलर जियो इंजीनियरिंग है। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसका मकसद सूरज की रोशनी का कुछ हिस्सा वापस अंतरिक्ष में भेजना है, ताकि धरती पर कम गर्मी पहुंचे। इस तकनीक में सूरज की रोशनी को कम करने के साथ ही आसमान में एयरोसोल छिड़कने और समुद्री बादलों को चमकदार बनाने जैसे तरीके इस्तेमाल में लाये जाते हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग एवं क्लाइमेट चेंज जैसी वैश्विक आपदा से निपटने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है। UN की क्लाइमेट रिपोर्ट 2024 के मुताबिक 2100 तक धरती का तापमान 3.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। सोलर जियो इंजीनियरिंग को वैज्ञानिक एक ‘प्लान B’ मान रहे हैं।
सोलर जियोइंजीनियरिंग के फायदे जितने आकर्षक हैं, जोखिम भी उतने ही गंभीर हैं।
ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी चुनौती है, जिसके लिए बड़े और बोल्ड कदम उठाने होंगे. सवाल ये है- क्या हम प्रकृति के साथ इतना बड़ा प्रयोग करने को तैयार हैं? इस सवाल का जवाब आने वाले सालों में मिलेगा।
ग्लोबल वार्मिंग का हवाला देते हुए यूके की सरकार ने हाल ही में कुछ वैज्ञानिक प्रयोगों को मंजूरी दी है जिसमें सूरज की रोशनी को कम करने की बात की गई है। ये कदम पर्यावरण संकट से निपटने की नई दिशा दे सकते हैं, लेकिन इसके समाहित जोखिम से इंकार नहीं किया जा सकता है।
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