रांची : झारखंड
@ The Opinion Today
तुम्हारे पास जितना है, इतना हम छोड़ के आए थे।
पाकिस्तान की सिंध प्रांत की असेंबली में सिंध प्रांत के विधायक सैयद एजाज उल हक ने ‘बिहारी’ कर तंज कसने पर जोरदार बहस करते हुए आपत्ति दर्ज कराई। सोशल मीडिया में वीडियो वायरल होने के बाद एक बार फिर से यह सवाल खड़ा हो गया कि क्या आज भी बिहारी शब्द एक गाली और तंज कसने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
क्या देश के बाहर रह रहे बिहारियों को आज भी यह शब्द किसी हिकारत की नजर से देखते हुए पुकारने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है?
पाकिस्तान की असेंबली से उठा यह बवाल कई सवाल पूछता है।
विधायक सैयद एजाज उल हक ने कहा कि यह शब्द न केवल गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, बल्कि इससे एक पूरे समुदाय का अपमान हो रहा है, जिसने पाकिस्तान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी।
पाकिस्तान को बनाने में क्या थी बिहारी मुसलमानों की भूमिका।
सिंध असेंबली में अपनी तकरीर के दौरान सैयद एजाज उल हक ने कहा “बिहारी वो लोग हैं जिन्होंने पाकिस्तान बनाया था। आज आप इन्हें गाली समझते हैं? यह भूलना उनकी कुर्बानियों का अपमान है.” उन्होंने ‘बिहारी’ शब्द को मजाक में इस्तेमाल करने पर कड़ी निंदा की। उन्होंने बिहारियों को पाकिस्तान के निर्माण में योगदान देने वाला समुदाय बताया।
भारत से विभाजन के दौरान और उसके बाद पलायन करने वाले मुसलमानों के लिए पाकिस्तान में बिहारी शब्द का इस्तेमाल किया गया। 1947 में भारत विभाजन के समय, बिहार और उत्तर प्रदेश से कई मुसलमानों ने पाकिस्तान (पश्चिमी और पूर्वी) का रुख किया। बांग्लादेश बनने के बाद, जो बिहारी मुसलमान वहां से पाकिस्तान लौटे, उन्हें भी ‘बिहारी’ कहा गया।पाकिस्तान में इनकी पहचान ‘मुहाजिर’ (प्रवासी) के रूप में हुई।
राजनीतिक भेदभाव का सामना समुदाय के लोग आज भी करते हैं और अपनी मूल पहचान और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
बिहारी शब्द को सही सम्मान मिले।
सिंध असेंबली में बहस के दौरान
सैयद एजाज उल हक का कहना था “बिहारी शब्द का सही सम्मान होना चाहिए।यह गाली नहीं, बल्कि गर्व का प्रतीक है.”‘बिहारी’ शब्द को नकारात्मक रूप से इस्तेमाल करने पर रोक लगाई जाए। समुदाय के संघर्ष और योगदान को स्वीकार किया जाए।
बांग्लादेश में क्या है बिहारी मुसलमानों की स्तिथि।
बांग्लादेश के बिहारी मुसलमान आज भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। तकरीबन 3 लाख उर्दू भाषी भारतीय मुसलमान पिछले 4दशक से बांग्लादेश में अनिश्चितता की जिंदगी गुज़ारने को बेबस है।
स्थानीय लोग इन्हें बिहारी बुलाते हैं जबकि ये खुद को पाकिस्तानी समझते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि पाकिस्तान ने कभी इन्हें वहां आने की अनुमति नहीं दी।
बिहारी मुसलमानों में से करीब आधे लोग अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस द्वारा चलाए जा रहे शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
ढाका हाईकोर्ट ने 2008 में बिहारी मुसलमानों को राष्ट्रीयता प्रदान की थी।
1947 में देश के बंटवारे के बाद ये मुस्लिम शरणार्थी भारतीय राज्य बिहार से बांग्लादेश आए थे. उनके जहन में सपना था कि पूर्वी पाकिस्तान में एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे।
1971 की लड़ाई के दौरान कई उर्दू भाषी बिहारी मुसलमानों ने पाकिस्तानी सेना के साथ संघर्ष किया था या उसका समर्थन किया था।
1971 की लड़ाई के बाद जब स्वतंत्र बांग्लादेश का जन्म हुआ तो वहां की सरकार ने बिहारियों को पाकिस्तान भेजने का प्रस्ताव दिया था । 5लाख से ज्यादा लोगों ने पाकिस्तान जाने की इच्छा जाहिर की लेकिन 70 के दशक के मध्य में इस कार्रवाई को उस समय अचानक रोक दिया गया जब पाकिस्तान ने और लोगों को अपने यहां लेने से इनकार कर दिया।
इस राजनीतिक फैसले के बाद करीब 3 लाख से ज्यादा बिहारी बांग्लादेश में ही रह गए और उनके सामने ये बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया कि वो अपना वतन किसे कहें?
36 वर्षों के संघर्ष के बाद 2008 में ढाका हाईकोर्ट के फैसले से इस समस्या का सैद्धांतिक हल तो निकल गया लेकिन समस्याएं फिर भी बनी रहीं।
पाकिस्तान की सिंध प्रांत की असेंबली में सिंध प्रांत के विधायक सैयद एजाज उल हक के उठाए सवाल ने एक बार फिर से देश और परदेश में रहने वाले बिहारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है ।
#theopiniontoday #jharkhand #Bihari #BiharBihar
Discover more from theopiniontoday.in
Subscribe to get the latest posts sent to your email.