रांची : झारखंड
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ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए कुंभ में जापानी मियावाकी पद्धति का प्रयोग क्यों किया जा रहा है ?
प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ 2025 की तैयारी के मद्देनजर, विभिन्न स्थानों पर घने जंगल विकसित किए गए हैं, जिससे शहर में आने वाले लाखों भक्तों को शुद्ध हवा एवं स्वस्थ वातावरण मिल सके। प्रयागराज नगर निगम ने इसके लिए पिछले दो वर्षों में जापानी मियावाकी पद्धति का उपयोग किया है, जो अब हरे-भरे जंगलों में तब्दील हो गए हैं। ये पौधे अब ऑक्सीजन बैंक के तौर पर काम कर रहे हैं। इन प्रयासों से न केवल हरियाली को बढ़ावा मिला है बल्कि वायु गुणवत्ता में सुधार भी हुआ है।
प्रयागराज निगम क्षेत्र पिछले दो वर्षों में 55,800 वर्ग मीटर के क्षेत्र को कवर करते हुए शहर में 10 से ज्यादा स्थानों पर वृक्षारोपण किया है। वहीं नैनी औद्योगिक क्षेत्र में सबसे बड़ा वृक्षारोपण किया गया है, जिनमें 63 प्रजातियों के लगभग 1.2 लाख पेड़ लगाए गए हैं, जबकि शहर के सबसे बड़े कचरा डंपिंग यार्ड की सफाई कर बसवार में 27 विभिन्न प्रजातियों के 27,000 पेड़ लगाए गए हैं।
मियावाकी पद्धति का प्रयोग सबसे पहले जापान में 1970 के दशक में किया गया। यह सीमित स्थानों में घने जंगल उगाने का एक क्रांतिकारी तरीका है। इसे ही आम शब्दों में ‘पॉट प्लांटेशन विधि’ कहा जाता है। इसमें पेड़ों और झाड़ियों को एक दूसरे के करीब लगाना शामिल है जिससे उनकी वृद्धि तेजी से हो सके। इस पद्धति में पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं. शहरी क्षेत्रों मीन हरियाली का यह एक व्यावहारिक समाधान पेश करता है।
मियावाकी तकनीक देशी प्रजातियों के पौधे का समर्थक, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता को बढ़ावा देते हुए वन विकास में तेजी लाता है। मियावाकी पद्धति का उपयोग कर लगाए गए पेड़ पारंपरिक जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं, तेजी से बढ़ते हैं और समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करते हैं।
यह प्रयोग मिट्टी के कटाव को रोकता है और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देता है, जिससे यह पर्यावरणीय जीर्णोद्धार के लिए एक प्रभावी उपकरण बन जाता है।
कुछ रोचक जानकारी
अकीरा मियावाकी (मियावाकी अकीरा) का जन्म 29 जनवरी 1928 को हुआ था। यह एक जापानी वनस्पतिशास्त्री और पौधों की पारिस्थितिकी के विशेषज्ञ थे, जो बीजों और प्राकृतिक जंगलों में विशेषज्ञता रखते थे।
वे दुनिया भर मे क्षरित भूमि को प्राकृतिक वन मे बदलने के विशेषज्ञ के रूप में विख्यात थे। वे 1993 से योकोहामा नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और जापानी सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज इन इकोलॉजी के निदेशक थे। उन्हें 2006 में ब्लू प्लैनेट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अकीरा मियावाकी कि मृत्यु 16 जुलाई 2021 को हुई।
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