रांची : झारखंड
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कर्नाटक देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां ‘राइट टू डाई’ यानि ‘गरिमा से मृत्यु’ का अधिकार कानून लागू किया गया है. हालांकि यह यूथेनेशिया या इच्छा मृत्यु नहीं है. इसके बाद से देश में Right To Die With Dignity को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है।
क्या है राइट टु डाई विद डिग्निटी कानून?
कोई मरीज अगर गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित है, वह जीवन रक्षक उपचार जारी नहीं रखना चाहता, तो अस्पताल और डॉक्टर उस मरीज के फैसले का सम्मान करने के लिए बाध्य होंगे। डिस्ट्रिक्ट हेल्थ ऑफिसर (DHO) ऐसे केस को प्रमाणित करने के लिए सेकंडरी बोर्ड में न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट या इंटेंसिविस्ट को रखेगा। इसी बोर्ड के फैसले के बाद ही मरीज को गरिमा से मृत्यु का अधिकार मिल सकेगा।
इच्छामृत्यु और गरिमा से मृत्यु अधिकार में क्या अंतर
सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2023 जनवरी में Right To Die With Dignity को लेकर फैसला लिया गया था। गरिमा से मृत्यु अधिकार में मरीज को अपने आखिरी पलों में अपने जीवन को जारी रखने का अधिकार होता है कि वह इलाज को जारी रखना चाहता है या नहीं, जिससे वह मृत्यु को पूरे सम्मान के साथ प्राप्त कर सके।
क्या होता है लिविंग विल?
लिविंग विल एक कानूनी दस्तावेज है, जो 18 साल से अधिक उम्र के किसी व्यक्ति को ये तय करने की अनुमति देता है कि अगर वो लाइलाज बीमारी या ऐसी स्थिति में चला जाए जहां ठीक होने की कोई संभावना न हो और वो खुद फैसले लेने में असमर्थ हो तो इस स्थिति में उसे किस तरह की मेडिकल केयर मिलनी चाहिए। कानूनी तौर पर लिविंग विल बनाने पर ही ही पैसिव युथनेशिया यानि राइट टू डाई को सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त कानूनी मान्यता दी है, Active Euthanasia यानि इच्छा मृत्यु भारत में अवैध है और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराध माना जाता है।
लिविंग विल एक क़ानूनी दस्तावेज़ है?
ये दस्तावेज़ 18 साल से अधिक उम्र के किसी शख़्स को ये तय करने की अनुमति देता है कि अगर वो लाइलाज बीमारी या ऐसी स्थिति में चला जाए जहां ठीक होने की कोई संभावना न हो और वो खुद फैसले लेने में असमर्थ हो, तो उसे किस तरह की मेडिकल देखभाल मिलनी चाहिए.
उदाहरण के तौर पर, वो शख़्स इसमें बता सकता है कि उसे लाइफ़ सपोर्ट मशीनों पर रखना है या नहीं. वो ये भी तय कर सकते हैं कि उन्हें पर्याप्त दर्द निवारक दवा दी जाए.
भारत में साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को लिविंग विल बनाने की अनुमति दे दी थी, जिससे वो ‘पैसिव यूथेनेशिया’ चुन सकते हैं.
ध्यान दें कि लिविंग विल कानूनी दस्तावेजों की एक व्यापक श्रेणी से संबंधित है जिसे ‘अग्रिम निर्देश’ कहा जाता है जिसका उपयोग सामूहिक रूप से आपकी भविष्य की चिकित्सा देखभाल को संबोधित करने के लिए किया जा सकता है। कुछ लोग दोनों शब्दों का परस्पर उपयोग करते हैं, लेकिन जब लिविंग वसीयत के अर्थ की जांच की जाती है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में दोनों एक ही नहीं हैं।
क्या है पैसिव युथनेशिया
पैसिव युथनेशिया का अर्थ है किसी व्यक्ति को उसके जीवन को समाप्त करने के लिए सक्रिय रूप से सहायता प्रदान करना, खासतौर से तब जब वह व्यक्ति गंभीर बीमारी या दर्द में हो और उसकी स्थिति में सुधार की कोई संभावना नजर न आ रही हो. यह इंजेक्शन आदि से दी जाने वाली इच्छामृत्यु नहीं है. यह अवधारणा उन परिस्थितियों से संबंधित है जहां मरीज की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे एक सम्मानजनक तरीके से मृत्यु का हक दिया जाता है. इसमें जीवन रक्षक उपचार (जैसे वेंटिलेटर, दवाइयां) को हटा देना या रोक देना शामिल है, ताकि व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अपना शरीर त्याग सके.
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