जाड़े में बनने वाली मिठाई और कारीगर

TILKUT

रांची : झारखंड

@The Opinion Today

जाड़े के मौसम में पलायन करने को मजबूर है ये कारीगर

एक पंक्ति में बैठकर तिल की कुटाई करते इन कारीगरों में कोई किसान है तो कोई मजदूर। कोई कंबल बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता है तो कोई दिल्ली में बाल्टी बनाने वाली मिनी फैक्ट्री में।
महेंद्र यादव मेदिनीनगर के रहने वाले हैं और कंबल बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते हैं जबकि संतोष साव पंजाब जाकर के खेतों में काम करते करते है।

ठंड के मौसम के शुरू होते ही ये कारीगर घरों की ओर लौट आते हैं ।

ठंड के दिनों में एक खास मिठाई बनाई जाती है । इसकी सोंधी खुशबू भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपना स्थान रखती है। जी हां, बात हो रही है गुड़ और तिल के मिश्रण से बनाई जाने वाली तिलकुट की। यह एक ऐसी मिठाई है, जिसकी डिमांड ठंड के दिनों में दो से तीन महीने ही रहती है।
इन महीनों में इसकी खूब बिक्री होती है। सबसे अधिक बिक्री होती है मकर संक्रांति के दिन।

तिलकुट की पहचान वैसे तो बिहार के गया जिले के साथ जुड़ा है लेकिन बिहार से सटे झारखंड के चतरा, हजारीबाग, कोडरमा में ठंड के मौसम में तिलकुट एक लघु कुटीर उद्योग का रूप ले लेता है।
तिलकुट बनाने वाले कारीगरों की मांग इस समय अधिक रहती है।

चतरा जिले के टंडवा से रांची आकर तिलकुट बेचने वाले श्याम प्रजापति अपने परिवार के साथ अपने गांव के कारीगर भी साथ लाएं है। वह पिछले कई सालों से रांची के पंडरा में अपनी दुकान लगाते आ रहे हैं। उनके लिए इन तीन महीनों का खास महत्व है।
अपनी छोटी सी तिलकुट की दुकान में वह चार कारीगरों के साथ रात दिन तिलकुट बनाने का काम करते है।श्याम बताते हैं तिल की कीमत अभी 180₹ किलो है और तिलकुट 360₹ से 380₹ किलो बिक रहा है। महंगाई ने इसकी गुणवत्ता पर असर डाला है। पुराने ग्राहक इतने ही पैसों में अच्छी तिलकुट की मांग करते है जो हमारे लिए संभव नहीं हो पाता।

हजारीबाग के केरेडारी के रहने वाले संदीप रांची के एक तिलकुट दुकान में काम करते हैं। वह खेतिहर है और बाकी समय मजदूरी करने बाहर जाते रहते हैं लेकिन जाड़े का मौसम शुरू होते ही वह पंडरा की एक तिलकुट दुकान में काम करने वापस लौट आते हैं ।
संदीप बताते हैं ” इस मौसम में तिलकूट बनाने वाले कारीगरों की बहुत मांग होती है। अपनी खुद की दुकान क्यों नहीं खोलते पूछे जाने पर संदीप बनाते है * तिलकुट बनाना बहुत मेहनत का काम है इसमें खर्च भी आता है। बिना चार पांच लोगों के मिले यह नहीं हो सकता ऊपर से महंगाई भी बहुत बढ़ गई है।

मेदिनीनगर के पांकी के रहने वाले संतोष कहते हैं तीन महीनों का यह बिजनेस है उसके बाद इसकी बिक्री नहीं होती है। जिस दुकान में मैं काम करता हूं वह भी अपनी परचून की दुकान पर चलाने पर अधिक ध्यान देते हैं । हमारी जरूरत केवल जाड़े के मौसम में ही है। फरवरी शुरू होते ही हम वापस अपने गांव चले जाते हैं। स्टॉक में रखा माल बिकता रहता है। माल खत्म होने के साथ ही सीजन भी चला जाता है। गर्मी में तिल की कुटाई नहीं होती है।

जाड़े में लोग इतना तिलकुट क्यों खाते हैं?

चूंकि तिलकुट तिल से बनती है, इसलिए इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। खासकर सर्दियों के सीजन में तिल या तिल से बनी तिलकुट या अन्य खाद्य प्रोडक्ट को स्वास्थ्य के लिए रामबाण माना गया है।

पोषण का कॉम्बो पैक।

तिल और गुड़ की खूबियों से हम दादा नानी के जमाने से परिचित है। तिल में प्रोटीन, फाइबर, ओमेगा 6 जैसे गुण छिपे हैं, साथ ही इसमें अच्छी मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक आदि पाए जाते हैं।तिल में टायरोसिन नमक अमीनो एसिड होता है, जो सीधे सेरोटोनिन एक्टिविटी से जुड़ा होता है और इसके सेवन से तनाव से लड़ने में मदद मिलती है । यह अनोखी मिठाई न्यूट्रिशन का कोंबो पैक है।


तिलकुट बनाने के विधि

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