रांची : झारखंड
@ The Opinion Today
संकट में इंडियन ब्लैक टर्टल का भविष्य
कछुओं और कछुओं के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए दुनिया भर में हर साल 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है। यह प्राणी 20 करोड़ से अधिक वर्षों से पृथ्वी पर मौजूद हैं। यह विशेष दिन उनके सामने आने वाले कई खतरों को सामने लाता है, जिसमें आवास का नुकसान, अवैध व्यापार और पर्यावरण क्षरण शामिल हैं। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में कछुओं की अहम भूमिका होती है। कछुओं को कई खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें आवास का नष्ट होना, प्लास्टिक प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और पालतू जानवरों या भोजन के लिए अवैध व्यापार शामिल है। नतीजतन दुनिया भर में 300 कछुओं की प्रजातियों में से 129 खतरे में हैं।
झारखंड में 12 प्रकार के कछुए पाए जाते हैं, जिनमें से 5 विलुप्त होने के कगार पर हैं। झारखंड में कछुओं को बचाने के लिए कछुआ पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई है। टीआइसी सर्वे के अनुसार झारखंड में कछुओं की पांच प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. इनमें गंगाज सॉफ्टसेल टर्टल, इंडियन पीकॉक सॉफ्टशेल टर्टल, ब्लैक स्पॉटेड पॉन्ड टर्टल, क्राउंड रिवर टर्टल और ट्रिकैरिनेट हिल टर्टल शामिल हैं. वहीं संकटग्रस्त स्थिति में चार प्रजातियां इंडियन नैरोहेडेड सॉफ्टशेल टर्टल, थ्री स्ट्राइप्ड रूफ्ड टर्टल और येलो टॉर्टाेइज शामिल हैं. राज्य में सबसे अधिक पायी जानेवाली कछुआ की प्रजाति इंडियन फ्लैपसेल टर्टल को आइयूसीएन ने निकट भविष्य में लुप्तप्राय की श्रेणी में रखा है। हजारीबाग, बोकारो, पाकुड़, गिरिडीह व देवघर में पाये जाने वाला रेड क्राउंड रूफ्ड टर्टल अब लुप्तप्राय हो चला है. इसे आखरी बार 2020 में देखा गया था. वहीं, इंडियन रूफ्ड टर्टल और इंडियन ब्लैक टर्टल को निकट भविष्य में संकटग्रस्त की श्रेणी में शामिल किया गया है. कछुआ की इन प्रजातियाें को कोडरमा, दुमका, साहेबगंज, गढ़वा, पलामू व चतरा के नदी और धान के खेतों में देखा गया है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने साल 2021 तक, लाल सूची में शामिल 274 कछुओं की प्रजातियों में से 62.4 फीसदी को दुनिया भर में संकटग्रस्त माना गया, जिनमें 171 प्रजातियां शामिल हैं।
कछुए समुद्र या मीठे पानी में रहते हैं, जबकि कछुए जमीन पर रहते हैं। कछुए 300 साल तक जीवित रह सकते हैं, जबकि इनमें से कुछ कछुए आम तौर पर 40 से 70 साल तक जीवित रहते हैं।
वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन के मुताबिक, कछुओं के बच्चे अत्यधिक खतरों का सामना करते हैं, लगभग 10,000 में से केवल एक बच्चा वयस्कता तक पहुंचता है। इन बच्चों को हमेशा अपने जीवन के शुरुआती दिनों में शिकारियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन मानवजनित गतिविधियों के कारण उनके जीवित रहने की दर और भी कम हो रही है।
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